किन्ही कारणों से अभी ये ब्लॉग इंग्लिश भाषा में उपलब्ध नहीं है। बहुत जल्द इंग्लिश भाषा में भी उपलब्ध कराने का प्रयास करूँगा।
For some reason this blog is not available in English. I will try to make it available in English soon.
शो कर झील के सामने मैं और पीछे है नमक की झील और पहाड़।
लेह, लद्धाख जाना हर घुमक्कड़ के लिए एक सपने की तरह है, ये घुमक्कड़ों का भारत में स्थित सबसे बड़ा तीर्थ है। आपने अक्सर लेह, लद्धाख, पैंगोंग झील आदि की खूबूसरत तस्वीरें देखीं होगीं, ये तस्वीरें जितनी खूबसूरत है उतना ही इन स्थानों पर जाना कठिन है, यहाँ बिना तैयारी के जाने के बारे में सोचना बहुत भारी साबित हो सकती है। पूरे भारत से हर साल लाखों लोग लेह, लद्धाख जाने की तैयारी करते हैं मगर उनमें से काफी लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें ये यात्रा बीच रास्ते में अधूरी छोड़कर वापिस आना पड़ता है, ऐसा इसलिए होता है क्यूँकि उन्होंने यहाँ आने की सही से तैयारी नहीं की थी, ध्यान रखिये लेह, लद्धाख आना मनाली या मसूरी जाने जैसा नहीं है, ये आपके धैर्य की परीक्षा है, इसमें जल्दबाज़ी वाले कहीं नहीं पहुँच पाते। मैंने पिछले महीने नॉएडा से लेह, लद्धाख की यात्रा अपनी खुद की 150CC बाइक से सकुशल पूरी की है और वहाँ की परिस्थिओं से रूबरू होकर वापिस आया हूँ, तो मैं अपने इस ब्लॉग के माध्यम से आपको लेह, लद्धाख यात्रा की तैयारिओं के बारे में बताना हूँ, अगर आप इसके अनुसार अपनी यात्रा की तैयारी करते हैं तो आप अपने लेह, लद्धाख के सपने को पूरा कर सकते हैं। इस यात्रा में मैंने करीब 2300 किलोमीटर बाइक चलाई थी यात्रा में हमने कहीं भी प्लास्टिक की बोतल में मिलने वाला पानी नहीं लिया, घर से एक स्टील की बोतल लेकर चले थे और रास्ते में जगह जगह उसे भरते रहे और हम 3 लोगों ने उसी से काम चलाया।
नोट: मैं लद्दाख के एक्सपर्ट नहीं हूँ, इस ब्लॉग के माध्यम से मैं अपने अनुभव आपके साथ साझा कर रहा हूँ,अगर आपको लगता हैं की किसी पॉइंट पर मैं गलत हूँ या कुछ ऐसा जो बताना जरुरी था और मैं भूल गया हूँ तो नीचे कमेन्ट बॉक्स में बताने का कष्ट करें।
रोहतांग पास से लेह के रास्ते में कहीं।
लद्धाख के बारे में जानकारी: विकिपीडिया
उत्तरी भारत का एक केन्द्र शासित प्रदेश है (6 अगस्त 2019 से, इसके पहले ये जम्मू कश्मीर राज्य का हिस्सा थे), जो उत्तर में काराकोरम पर्वत और दक्षिण में हिमालय पर्वत के बीच में है। यह भारत के सबसे विरल जनसंख्या वाले भागों में से एक है। लद्दाख का क्षेत्रफल 97,776 वर्ग किलोमीटर है। इसके उत्तर में चीन तथा पूर्व में तिब्बत की सीमाएँ हैं। सीमावर्ती स्थिति के कारण सामरिक दृष्टि से इसका बड़ा महत्व है। लद्दाख, उत्तर-पश्चिमी हिमालय के पर्वतीय क्रम में आता है, जहाँ का अधिकांश धरातल कृषि योग्य नहीं है। गॉडविन आस्टिन (K2, 8,611 मीटर) और गाशरब्रूम I (8,068 मीटर) सर्वाधिक ऊँची चोटियाँ हैं। यहाँ की जलवायु अत्यंत शुष्क एवं कठोर है। वार्षिक वृष्टि 3.2 इंच तथा वार्षिक औसत ताप 5 डिग्री सें. है। नदियाँ दिन में कुछ ही समय प्रवाहित हो पाती हैं, शेष समय में बर्फ जम जाती है। सिंधु मुख्य नदी है। जिले की राजधानी एवं प्रमुख नगर लेह है, जिसके उत्तर में कराकोरम पर्वत तथा दर्रा है। अधिकांश जनसंख्या घुमक्कड़ है, जिसकी प्रकृति, संस्कार एवं रहन-सहन तिब्बत एवं नेपाल से प्रभावित है। पूर्वी भाग में अधिकांश लोग बौद्ध हैं तथा पश्चिमी भाग में अधिकांश लोग मुसलमान हैं। हेमिस गोंपा बौंद्धों का सबसे बड़ा धार्मिक संस्थान है।
सबसे पहले मैं आता हूँ लेह और लद्धाख को लेकर लोगों के मन में जो संशय है उस पर, वर्तमान समय में लद्धाख एक केंद्र शाषित प्रदेश है जिसमें लेह, कारगिल आदि जिले आते हैं और इसकी राजधानी लेह है, यानि की अगर कोई व्यक्ति लेह तक होकर आया है तो वो लद्धाख होकर आया है मगर इसका ये मतलब नहीं हैं की उसने पूरा लद्धाख घूम लिया।
तंगलंगला पास।
लद्धाख में घूमने लायक स्थान:
खारदुंगला पास, मैग्नेटिक हिल, लेह पैलेस, विश्व शांति स्तूप, स्पितुक गोम्पा मोनेस्ट्री, गोंपा सोमा मोनेस्ट्री, वॉर म्यूसियम, विक्ट्री टावर, गुरुद्वारा पत्थर साहिब, संगम (जंस्कार और सिंधु नदी), हॉल ऑफ़ फेम, शो मोरीरि झील, पैंगोंग झील, शो कार झील, नुब्रा वैली, तुरतुक, पनामिक, लामायुरू दर्रे, कारगिल, पदुम, दारचा, हेमिस गोम्पा, हुन्डर वैली, थिकसे मोनेस्ट्री, सैंड डून्स नुब्रा वैली आदि।
जंस्कार और सिन्धु नदी का संगम स्थल।
लद्धाख के कुछ ज्यादा ऊँचाई वाले पास और उनकी ऊँचाई (समुद्र तल से): जानकारी स्त्रोत।
नोट: मनाली की तरफ से जाने के लिए आपको एंट्री परमिट बनवा पड़ता है जिसे आप ऑनलाइन बनवा सकते है, परमिट ऑनलाइन बनवाने के लिए यहाँ जाएं।
स्पितुक गोम्पा मोनेस्ट्री, लेह।
लद्धाख कैसे जा सकते हैं:
लद्धाख जाने के 3 तरीके हैं, जिसमें पहला है लेह तक फ्लाइट से जाना और फिर वहाँ से किराये पर मिलने वाली बाइक या टैक्सी से आसपास घूमना। ये उन लोगों के लिए है जिनके पास समय की कमी है या या जो हफ़्तों गाड़ी चलना नहीं चाहते। लेह तक फ्लाइट से जाने के बाद आप वहाँ आसपास के स्थान घूमकर वापसी में फिर से लेह से फ्लाइट पकड़ सकते हैं, इस तरह से आप कुल 3 से 5 दिन में अपने हिसाब से लद्धाख घूमे सकते हैं जिसमें आप दुनिया के सबसे ऊँचे पास में से एक - "खरदुंगला पास" भी हो आएँगे और 3 इडियट्स वाली फेमस झील पांगोंग भी मगर मेरे या ज्यादातर घुम्मकड़ लोगों का जो अनुभव है उस हिसाब से आपने कहने को तो लद्धाख घूम लिया पर आपने असल में जो लद्धाख की यात्रा का रोमाँच है वो उसक आनंद लिया ही नहीं। हो सकता है की मेरा निजी अनुभव हो और आपका अलग हो पर मैंने वहाँ जो महसूस किया वो कुछ इस तरह से है - कुछ जगहों की यात्राओं में मंज़िल से ज्यादा रास्ते खूबसूरत होते हैं लद्धाख का सफर कुछ ऐसा ही है। लेह फ्लाइट से जाने के सफर की तुलना अगर मैं राफ्टिंग से करूँ तो ये ठीक ऐसे है जैसे दूर से राफ्टिंग होते हुए देखना या किसी यात्रा पर जाने की जगह वहाँ की तस्वीरें देखना। बाकि ये कभी न ख़त्म होने वाले टॉपिक हैं तो इसे यहीँ समाप्त करके आगे बढ़ते हैं। दूसरा तरीका है रोड से होते हुए, इस तरीके से जाने के लिए आपको करीब एक हफ्ते का समय चाहिए होगा और एक अच्छी गाड़ी जो की बाइक, कार या जीप कुछ भी हो सकती है बस ध्यान देने वाली बात ये है की उसका ग्राउंड क्लीयरेंस (गाड़ी की जमीन से ऊँचाई) ज्यादा हो। तीसरा है दिल्ली से लेह आप बस द्वारा भी जा सकते हैं और यह अन्य तरीकों से सस्ता है। दिल्ली - लेह बस सेवा के बारे में सम्पूर्ण जानकारी के लिये यहाँ क्लिक करें। इसके अलावा दिल्ली से मनाली के लिए 24 घण्टे साधारण, वॉल्वो बस सेवा उपलब्ध है।
हॉल ऑफ़ फेम, लेह।
लद्धाख रोड रूट:
लद्धाख जाने के लिए मुख्यतः 2 रूट का लोग प्रयोग करते हैं, पहला वाया मनाली होकर, दूसरा श्रीनगर होकर। इसमें भी लोग अपने हिसाब से जाते हैं जैसे कुछ लोग मनाली से शुरू करते हैं और लेह होते हुए श्रीनगर की की तरफ से वापसी करते हैं या कुछ लोग मनाली से शुरू होकर मनाली ही ख़त्म करते है या फिर श्रीनगर की तरफ से शुरू करके लेह होकर श्रीनगर ही ख़त्म करना। ये निर्भर करता है की आपके पास समय कितना है, आपके पास गाड़ी खुद की है या किराये की है आदि। यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है की अगर आपके पास किराये की बाइक है जो की अपने मनाली से किराये पर ली है तो उसे आपको वापिस करने के लिए आपको मनाली ही आना होगा, अन्यथा अपने जो सिक्योरिटी के रूप में धन राशि दी है वो पैसे आपको वापिस नहीं मिलेंगे।
किस समय जाएं:
लद्धाख क्षेत्र का ज्यादातर हिस्सा सर्दिओं में बर्फ की मोटी चादर में दबा रहता है, उस समय आप लद्धाख रोड से नहीं जा सकते, उस समय फ्लाइट से लेह तक जाना और आसपास गाड़ी से घूमना यही संभव हो पाता है। अगर आप रोड ट्रिप प्लान कर रहे हैं तो अप्रैल के महीने के बाद यहाँ जाने वाली सड़कों की बर्फ हटाकर लोगों के आवागमन के लिए सड़क खोल दी जाती हैं और फिर सर्दिओं में बर्फ़बारी शुरू होने तक करीब 6 महीने तक ये सड़कें चालू रहती हैं इस दौरान आप कभी भी यहाँ जाने का प्लान कर सकते हैं मगर कोशिश करें की अत्यधिक बरसात वाले मौसम में न जायें, उस समय रास्तों में तमाम जगह भूस्खलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और उसमें आपका काफी समय बर्बाद होता है और जान माल की क्षति का भी भय रहता है।
वाहन का चयन:
लद्दाख जाने के लिए सबसे जरुरी जो चीज़ है वो है वाहन का चयन, वैसे ज्यादातर लोग लद्धाख जाने के लिए बाइक को प्राथमिकता देता हैं और मैं भी उनमें से एक हूँ। बाइक को प्राथमिकता देने के कुछ मुख्य कारण है - बाइक पर पहाड़ के लम्बे सफर में चक्करआना, उल्टी आना जैसी समस्याएं से सामना नहीं करना पड़ता। आप सीधे प्रकृति के संपर्क में होते हैं जो सुकून भी देता है। बाइक अगर ख़राब हो जाती है तो इसे किसी गाड़ी में रखकर या बाँध कर लाना कार की अपेक्षा आसान और सस्ता है और कुल मिलकर इसमें आपका खर्चा कम होगा अगर आप कम लोग हैं तब भी। बाकी आप अगर चार पहिया वाहन से इस सफर को करना चाहते हैं तो इस बात का विशेष ध्यान रखें की गाड़ी का ग्राउंड क्लीयरेंस ऊँचा हो, अगर सम्भव हो तो वो गाड़ी चुने जिसमें ड्राइविंग पिछले पहिओं में हो या 4*4 हो तो और अच्छा है और गाड़ी का एवरेज भी ठीकठाक हो क्यूँकि लद्धाख में एक पेट्रोल पंप के बाद दूसरा पेट्रोल पंप 365 किलोमीटर की दूरी के बाद पड़ता है और ये बात बाइक पर भी लागू होती है। इसलिए लद्धाख जाने वाले लोग गाड़ी के साथ पेट्रोल की कट्टियों में पेट्रोल साथ लेकर चलते हैं।
किराये का या सवयं का वाहन:
दिल्ली से मनाली की दूरी कुछ 580 किलोमीटर के आसपास है और मनाली से लेह कुछ 480 किलोमीटर के आसपास है। यानि अगर आप दिल्ली से अपनी गाड़ी से जाते हैं तो आपको कम से कम 1100 किलोमीटर गाड़ी चलानी होगी तब आप लेह पहुँचेगे उसके बाद लोकल लेह में घूमना अलग और अगर वहाँ से आप पैंगोंग झील भी जाते हैं तो आना जाना 500 किलोमीटर और रख लीजिये तो अगर आपको लगता है की आप इतनी गाड़ी चलाने में समर्थ हैं तो अपने शहर से अपनी गाड़ी से जाने का प्लान करें अन्यथा मनाली से किराये की गाड़ी लेकर जाना उचित रहेगा। या आप ज्यादा लोग हैं तो अपने शहर या मनाली से टैक्सी भी कर सकते हैं।
कम से कम कितने दिन का प्लान बनाएं:
मनाली से लेह तक जाने में आपको कम से कम 2 दिन चाहिए, फिर लोकल लेह घूमने के लिए कम से कम एक दिन, और फिर अगर आप वहाँ से बिना पांगोंग और नुब्रा वैली जाये वापिस आते हैं तो 2 दिन वापसी में लगेंगे। तो मनाली से लेह जाने और वहाँ थोड़ा बहुत घूमकर आने के लिए कम से कम 5 दिन रख लजिए, उसमें भी ये तब संभव है जब आपको रास्ते में कहीं किसी तरह की कोई दिक्कत का सामना नहीं करना पड़े और आपका शरीर पहाड़ों की ऊँचाई के अनुकूल हो अन्यथा आपको एक दिन मनाली या उसके आगे थोड़ी कम ऊँचाई वाली जगह पर रुक कर अपने शरीर को वहाँ के माहौल में ढलने के लिए भी चाहिए। अगर आप लेह से पैंगोंग झील और नुब्रा वैली भी जाते हैं तो आपको कम से कम 2 दिन और चाहिए। और अगर मनाली से शुरू करने के बाद आप वापसी श्रीनगर के रास्ते से करते हैं तो शायद आपको एक दिन और लग जाये क्यूँकि वो रास्ता आपके लिए नया होगा और आप उस पर तमाम जगह रुकते हुए आगे बढ़ेंगे ठीक यही श्रीनगर से शुरू करके मनाली ख़त्म करने पर भी लागू होगा। यानि की मोटे तौर पर 7 से 10 दिन का समय लगेगा पूरा सर्किट करने में।
कहाँ रुकें:
लेह में रुकने के लिए होटल, होमस्टे, हॉस्टल आदि उपलब्ध हैं तो आप अपने बजट के अनुसार कहीं भी रुक सकते हैं। मनाली से लेह के रास्ते में हर खाने पीने की दुकान पर आपको शेयरिंग में एक बेड 200 से 300 रु में मिल जाएगा जिसके साथ आपको एक रजाई और एक कंबल भी मिलता है।
खर्चे का गणित:
खर्चे का जो गणित है वो तमाम सारी बातों पर निर्भर करता है जैसे की आप अकेले यात्रा करते हैं या ग्रुप में, आपकी गाड़ी का एवरेज कितना है, रुकने पर कितना खर्च करते हैं आदि इत्यादि। फिर भी मोटे तौर पर 7 दिन की इस यात्रा को अगर आप अपने स्वयं के वाहन से करते हैं तो करीब 7 से 10 हजार के बीच आपका खर्चा होगा। और अगर आप किराये की बाइक से इस यात्रा को करते हैं तो ये खर्चा करीब 12 से 15 हजार होगा। और अगर आप किसी एजेंसी का पैकेज लेकर ये यात्रा करता हैं तो करीब 25 से 30 हजार का खर्चा होगा (इसमें उसका एक बैकअप वाहन आपके पीछे चलता है, अगर कहीं आपको लगे की आप बाइक नहीं चला पाएँगे या आपकी बाइक ख़राब होने की स्थिति में आप अपनी बाइक उसमें रख कर आगे की यात्रा किसी और के साथ पीछे बैठकर या बैकअप वाहन से कर सकते हैं)।
स्पितुक गोम्पा मोनेस्ट्री, लेह।
रास्ते की कठिनाइयाँ:
लेह जाना किसी हिल स्टेशन जाने जैसा नहीं है, लेह आपके धैर्य की परीक्षा है, यहाँ वो ही पास होते हैं जो धीरे चलें मगर लम्बा चलें, तात्पर्य ये है की यहाँ जल्दबाज़ी का कोई काम नहीं है, यहाँ धैर्यपूर्वक मगर लम्बे समय तक चलना पड़ता है। यहाँ रास्ते में मिलने वाली कुछ कठिनाइयाँ इस प्रकार हैं:
- नाले: ग्लेशियर से पिघलकर जो पानी सड़क पर होकर बहता है उसे यहाँ नाला कहा जाता है और रास्ते में आपको ऐसे 5 6 नाले पार करने होते हैं, चूँकि ये पानी सीधे ग्लेशियर से आ रहा है तो ये इतना ठंडा होता है की इसमें 2 मिनट खड़े रहने में ही हालत ख़राब होने लगती है। कई जगह ये नाले पत्थरों से होकर गुज़र रहे हैं और पत्थर भी ऐसे की जहाँ बाइक फँस जाती है और फिर 2 3 लोगों को नाले में घुसकर धक्का लगाकर बाइक निकालनी पड़ती है। इन नालों पर कई बार छोटी कार जिनका ग्राउंड क्लीयरेंस कम है वो भी फँस जाती हैं और ऐसे में उनके इंजन का चैम्बर टूटने का खतरा रहता है। बाइक से जाने वाले इन नालों को पार करने के लिए प्लास्टिक वाले जूते ले जाना न भूलें अन्यथा एक बार पैर भीगने पर पूरे दिन भयानक ठण्ड में गीले पैर बाइक चलाना बहुत मुश्किल होता है।
- ठण्ड: जून के महीने में भी इस रूट पर अधिकांश जगह हाड़ कँपा देने वाली ठण्ड पड़ती है और ज्यादा ऊँचाई वाले पास पर ये ठण्ड और भी ज्यादा भयानक हो जाती है तो ठण्ड से निपटने के लिए ठीकठाक कपड़ों का होना जरुरी है।
- माउंटेन सिकनेस: ये ज्यादा ऊँचाई पर होने वाली समस्याओं में से एक है इसके होने पर इंसान को चक्कर आना, उल्टी होना, हाथ पैर सुन्न होना आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे बचने के लिए ज्यादा ऊँचाई वाले स्थान पर जाने से पहले वहाँ के माहौल में शरीर को ढालना जरुरी है और ऐसा करने के लिए शुरूआती एक दिन सिर्फ आराम करें। माउंटेन सिकनेस से बचने के लिए ये ब्लॉग पढ़ना न भूलें।
- ऑक्सीजन की कमी:
जैसा की आप सभी जानते ही हैं और नहीं जानते तो पार बता देता हूँ की 14000 फ़ीट से ऊपर ऑक्सीजन का लेवल सामान्य जगह की तुलना में करीब आधा रह जाता है और लेह के रास्ते में ज्यादातर जगह आप इस ऊँचाई या इससे ज्यादा ऊँचाई पर होते हैं तो लगभग पूरे रास्ते में सामान्य जगह से ऑक्सीजन कम ही होती है। लद्धाख जाने वाले तमाम लोगों में से अधिकांश लोग इतनी ऊँचाई पर पहली बार ही आते हैं तो किसी को पता भी नहीं होता की कम ऑक्सीजन में उनका शरीर किस तरह की प्रतिक्रिया करेगा। ऑक्सीजन की कमी से लोगों को चक्कर आने लगते हैं, चिड़चिड़ापन होने लगता है, गुस्सा आने लगता है, और निर्णय लेने की क्षमता कम हो जाती है। बाकि इसका हर एक इंसान के शरीर पर अलग असर होता है तो लद्धाख जाने से कुछ दिन पहले हो सके तो योग करना शुरू कर दें और संभव हो तो अपने डॉक्टर से भी इससे सम्बंधित सलाह लें। डाइमॉक्स नाम की एक टेबलेट इस स्थित में आराम प्रदान करती है मगर बिना डॉक्टर की सलाह के कोई दवाई न लें। आप चाहें तो मनाली से छोटा ऑक्सीजन सिलेन्डर भी साथ ले जा सकते हैं या आजकल छोटे स्प्रे फॉर्मेट में जो सिलेन्डर आते हैं वो भी ले सकते हैं। यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है की इस तरह की सारी चीजें मनाली से ही लेकर चलें क्यूंकि उसके बाद सिर्फ केलोंग में ठीकठाक बाजार हैं जहाँ मेडिकल स्टोर वगैरा हैं फिर उसके बाद जो भी है सीधा लेह में है।
पेट्रोल पंप की उपलब्धता:
मनाली से निकलने के बाद अगला पेट्रो पंप केलोंग से 10 किलोमीटर पहले टांडी में है और उसके बाद सीधा 365 किलोमीटर दूर लेह से पहले कारू में तो अगर आपकी गाड़ी के टैंक में इतनी दूरी तय करने के लायक पेट्रोल नहीं आ सकता तो कट्टी लीजिये और उसमे पेट्रोल भरवा कर साथ ले जाइये। रास्ते में पेट्रोल ख़त्म होने की स्थित में जो खाने पीने की दुकानें मिलती हैं उनके यहाँ पेट्रोल मिल जाता है मगर दोगुने दाम पर।
एटीएम या कैश:
मनाली से निकलने के बाद अगला एटीएम (चालू हालत में) आपको शायद लेह में ही मिले तो जरुरत से कुछ ज्यादा कैश साथ लेकर चलें।
अकेले या ग्रुप:
अगर आप पहली बार जा रहे हैं तो कोशिश करें ग्रुप में ही जाएं, बाकि मेरे हिसाब से ग्रुप में ही जाना ठीक है।
मोबाइल कनेक्टिविटी:
मनाली में आपको सभी मोबाइल कंपनी के नेटवर्क मिलते हैं उसके आगे निकलने पर नेटवर्क कहीं है कहीं नहीं है कुछ ऐसी स्थिति है। जिस्पा में बीएसएनएल और एयरटेल का नेटवर्क आता है, जिस्पा से आगे सिर्फ बीएसएनएल है और वो भी कहाँ काम करता है कहाँ नहीं इसके बारे में कुछ पक्का नहीं है। आपके जो भी इंटरनेट से सम्बंधित काम है वो आप मनाली से करके निकलें क्यूँकि उसके बाद जाते रास्ते भर सिर्फ बात करने लायक ही नेटवर्क मिलेगा और वो भी जरुरी नहीं है की आपके फोन में आये ही। अपने घर पर फोन करने के लिए आप रास्ते में जहाँ रुकें वहाँ के लोगों से फोन लेकर फोन कर सकते हैं (मैंने यही किया था क्यूँकि मेरा फोन जिमसें प्रीपेड वोडाफोन की सिम थी उस पूरी ट्रिप में डमी फोन बन गया था जिससे में सिर्फ फोटो खींच पा रहा था)।
लेह पैलेस, लेह।
लेह शहर का नज़ारा, लेह पैलेस से।
जाने की तैयारी:
लेह पैलेस, लेह।
बाइक किराये पर लेते समय ये बातें ध्यान में रखें: बाइक रेंट पर लेने से सम्बंधित साडी जानकारी यहाँ उपलब्ध है।
. मनाली में किराये पर बाइक देने लगभग हर गली में हैं जिनके यहाँ आपको अपनी पसंद की बाइक किराये पर मिल जाएगी। हर बाइक का अलग किराया होता है जैसे बजाज अवेंजर 1000 रु, बुलेट 350 1000 रु, हिमालयन 1500 रु रोज़ आदि।
. बाइक किराये पर लेने के लिए आपके पास ड्राइविंग लइसेंस होना जरुरी है और उसके अलावा एक और कोई फोटो आईडी जैसे की आधार कार्ड, किराये पर देने वाली एजेंसी आपसे इन दोनों दस्तावेजों की फोटोकॉपी या आधार कार्ड की ओरिजिनल कॉपी अपने पास रखते हैं जो की वापसी में आपको वापिस मिल जाती है।
. मनाली से लद्धाख के लिए जो बाइक आप लेंगे उसका परमिट भी आपको साथ में मिलेगा, मगर यहाँ पर ध्यान देने वाली बात ये है की ज्यादातर एजेंसी आपको बाइक कम से कम 5 या 6 दिन के लिए देती हैं जिसका सीधा मतलब ये है की अगर आप इनकी बाइक दूसरे दिन भी वापिस करते हैं तो आपको 5 या 6 का किराया देना ही पड़ेगा।
. किराये की धन राशि आपको एडवांस में देनी होगी और उसके अतिरिक्त करीब 8000 से 10000 रु सिक्योरिटी के रूप में जमा कराते हैं जो बाइक की सही सलामत वापसी पर आपको वापिस मिल जाते हैं।
. बाइक लेते वक़्त को चला कर देखना न भूलें ताकि बाइक में कुछ कमी महसूस हो तो एजेंसी वाले को बताएं अन्यथा उसका बिल आप पर फाड़ा जा सकता है।
. बाइक की हेडलाइट, इंडिकेटर चेक कर लें, और अगर कहीं कुछ टूटफूट है तो उसके बारे में पहले ही एजेंसी वाले को बता दें और बाइक की फोटो लेना न भूलें ताकि बाद में ये न हो की ये आपने तोड़ा है। .
. बाइक वाले से ये पूछना न भूलें की अगर किसी विपरीत स्थिति में वो बाइक वापिस लाने में सक्षम न हो तो बाइक कहाँ पर छोड़ सकता है और उस स्थिति में सिक्योरिटी के पैसे में से कितने पैसे काटेगा। लेह तक के इस सफर में कुछ लोगों को ऊँचाई और कम ऑक्सीजन की वजह से इतनी ज्यादा दिक्कत होने लगती है की उन्हें रास्ते में ही अपनी यात्रा पर विराम लगाकर वापिस आने पड़ता है, ऐसी स्थिति में कई बार लोग बाइक वापिस लाने में सक्षम नहीं होते हैं तो उन्हें बाइक वहीं किसी ठिकाने पर छोड़नी पड़ती है और उस बाइक को एजेंसी वाले ट्रक या किसी राइडर से चलवाकर वापसी मँगा लेते हैं मगर ये खर्चा आपकी सिक्योरिटी के पैसे में काटा जाता है।
गोम्पा सोमा मोनेस्ट्री, लेह।
मैग्नेटिक हिल, लेह।
नोट:
लद्दाख़ में हर साल लाखों पर्यटक जाते हैं और प्रत्येक पर्यटक एक दिन में कम से कम दो प्लास्टिक की पानी की बोतल तो लेता ही है, सोचिये इससे कितना कचरा वहाँ रोज़ उत्पन्न होता है। आप का एक छोटा सा प्रयास इस कचरे में कमी ला सकता है, इसके लिए आप अपने साथ एक स्टील की बोतल लेकर जाइये और रास्ते में जहाँ भी आप खाने पीने चाय नाश्ते के लिए रुकते हैं वहाँ से उस बोतल को भरते रहिये। इसके अलावा मनाली से आगे बढ़ने के बाद रास्ते में तमाम झरने मिलते हैं जिनका पानी एक दम साफ़ होता है उससे भी आप अपनी बोतल भर सकते हैं। जानकारी के लिए बताना चाहूँगा की रास्ते में जितनी भी दुकानों पर आप चाय नाश्ता या मैगी बड़े चाव से खाते हैं वो सभी लोग इसी पानी का उपयोग करते हैं। आपका ये छोटा सा प्रयास एक बड़ी मुहीम की शुरुआत कर सकता है।
फिर मिलेंगे कहीं किसी रोज़ घूमते फिरते।
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