किन्ही कारणों से अभी ये ब्लॉग इंग्लिश भाषा में उपलब्ध नहीं है। बहुत जल्द इंग्लिश भाषा में भी उपलब्ध कराने का प्रयास करूँगा।
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लद्दाख जाने से सम्बंधित सारी जानकारी के लिए ये ब्लॉग पढ़ना न भूलें।
जनवरी में हिमाचल स्थित शिमला, कुफरी, नारकण्डा की यात्रा की थी उसके बाद गोवर्धन और इस्कॉन नॉएडा के साथ कुछ धार्मिक यात्राओं के अलावा किसी भी लम्बी दूरी की यात्रा पर नहीं निकला था और ऐसा करने का एक कारण ये भी था की कहीं न कहीं मैंने अपने मन में ये सोचा था की अब यात्राओं में विराम लगाकर कुछ महीने आराम करूँगा और इस साल कहीं नहीं जाऊँगा, मगर ये कम्बख़्त मन कहाँ मानता है। जुलाई का महीना था और पिछली साल इसी महीने मैं और नेहा वैष्णों देवी के दर्शन करने गए थे, तब वहाँ अत्यधिक ठण्ड और सही से तैयारी न होने की वजह से हम लोगों ने भैरों दर्शन नहीं कर पाए थे। इस साल भी मन था कहीं निकलने का, मैंने अगले महीनों का कलेन्डर निकाला और आने वाले महीनों में से किसे में लम्बी छुट्टी पड़ रही है ये देखने लगा, गुणा भाग लगाने पर ये निष्कर्ष निकला की रक्षा बंधन के आसपास लम्बी छुट्टी मिल सकती है। अब अगला प्रश्न था की जाया कहाँ जाये तो उसका उत्तर मेरे मन में पहले से था और वो जगह थी कुमाऊँ में मुन्सियारी।
अभी ये सारे प्लान मन में चल ही रहे थे की अचानक एक दिन कुछ ऐसा हुआ की मेरा मन हुआ की 2 3 दिन के लिए कहीं घूमने निकला जाए, मैंने अपने एक खास दोस्त शशिकांत को रात के 9 बजे ऑफिस से फोन लगाया ये पूछने के लिए की वो कहीं घूमने जाने के मूड में हो तो चले मेरे साथ। 2 लोगों की इस कॉल में अगला बंदा हमारा खास दोस्त अजीत भी जुड़ गया और फिर शशिकांत ने कहा की मैं पिछली साल लद्धाख के लिए निकला था मगर छुट्टियाँ कम होने की वजह से बरलाचाला पास के थोड़ा आगे तक जाकर वापसी आ गया था, अगर तीनों लोगों को छुट्टी मिल जाये तो क्यों न लद्धाख चलें? मैंने हँस कर कहा की भाई 3 लोगों को एक साथ एक हफ्ते की छुट्टी मिलना असंभव सा है तो कुछ और देखो ये प्लान काम नहीं करेगा और वो बात वहीं आयी गयी हो गयी। 2 दिन बाद शशिकांत का फोन आया की उसने अपने ऑफिस में बात कर ली है और उसको जब चाहेगा तब छुटियाँ मिल जाएँगी तो अब तुम दोनों देख लो अगर तुम्हारी छुट्टियाँ का हिसाब किताब बनता है तो चलते हैं लद्धाख।
मेरे पास छुट्टियाँ काफी पड़ी थीं क्योंकि मैं छुट्टियाँ बहुत कम लेता हूँ पर समस्या थी पूरे एक हफ्ते की छुट्टी मिलना। मैंने अपने ऑफिस में बात की तो 21 वाले हफ्ते में छुट्टी मिल जाएगी ऐसा पता चला। हम 3 लोग किसी भी हफ्ते में जाने के लिए तैयार थे तो अब अजीत को 21 वाले में ही जाने के लिए अपने ऑफिस में बात करनी थी और भाग्यवश उसको भी छुट्टी मिल गयी। इस से मुझे ये समझ आ गया था कि हमारा लद्धाख का बुलावा आया गया है नहीं 3 लोगों को एक साथ पूरे हफ्ते की छुट्टी मिलना नामुमकिन सा है। मेरी लेह जाने की बात ऑफिस में काफी लोगों को पता चल गयी तो कुछ बुद्धिजीवियों ने मुझसे पूछा की भाई कौन सी बाइक से जा रहे हो तो मैंने बताया की मैं अपनी 150cc बाइक से यहीँ नॉएडा से जाने का प्लान कर रहा हूँ तो उन लोगों में से कुछ ने कहा की अरे ये बाइक जा ही नहीं पाएगी, रास्ते से लौटना पड़ेगा आदि इत्यादि। इन सभी बुद्धिजीवियों में से ज्यादातर ने आज तक अपने शहर से दिल्ली के अलावा और कहीं की यात्रा नहीं की थी और ये लोग ज्ञान इस तरह से दे रहे थे जैसे हर महीने लेह आप डाउन करते हों, खैर मैंने उनसे कहा की मैं जहाँ तक जा पाउँगा वहाँ तक जाऊँगा और फिर वापिस आ जाऊँगा, मैंने ऑफिस में छुट्टियाँ भी यही कह कर लीं थीं की अगर रास्ते में कहीं रोड बंद मिले तो वहीं से लौट आएँगे और मैं अगले दिन से ऑफिस आने लगूँगा।
अब अगला काम था जाने की तैयारी करना, शशिकांत पिछली साल इस रास्ते पर जा चुका था तो उसे रास्ते की सभी कठिनाइयाँ पता थी तो हमने एक दिन बातचीत कर कैसे क्या जाना है आदि तय किया। अभी बातचीत का दौर चल ही रहा था कि अजीत के एक दोस्त ने भी हमारे साथ चलने का मन बनाया, हमने उसे साथ ले चलने को हामी भर दी पर मुझे कहीं न कहीं पता था कि शायद ही जा पाए क्योंकि एक हफ्ते की छुट्टी मिलना आसान नहीं है। जाने के लिए ये तय हुआ कि हम लोग यहाँ से अपनी बाइक से चलेंगे और वहाँ पहुँच कर अगर जरूरत होगी तो 1 या 2 बाइक किराए पर ले लेंगे। जाने से पहले बाइक में कुछ जरूरी काम होने थे जैसे मुझे अपनी बाइक की सीट को थोड़ा आरामदायक करवाना था, शशिकांत को बाइक में एक्स्ट्रा लाइट लगवानी थी और दोनों बाइक में मोबाइल होल्डर भी लगना था तो हम 2 ने एक साथ एक दिन बैठकर ये काम करवाए और साथ ही मैंने कुछ जरूरी सामान जैसे पन्नी, रस्सी, जरूरी दवाइयाँ, खाने पीने के समान, ठंड के कपड़े आदि को इकठ्ठा करना शुरू कर दिया।
मेरे मन में या यूँ कहूँ हम सब के मन में इस यात्रा पर जाने का जितना रोमांच था उतना ही डर भी था। इस यात्रा में हमें करीब 2200 किलोमीटर से भी ज्यादा बाइक चलानी होगी और मैंने आज तक कभी भी 500 600 किलोमीटर से ज्यादा बाइक नहीं चलाई थी, इसके अलावा दुनिया के कुछ चुनिंदा ऊँचे दर्रों (पास) पर भयानक ठंड में बाइक चलाना ऊपर से ऑक्सीजन भी नाम मात्र पता नहीं कैसे क्या होगा?
---------- नॉएडा से मनाली का सफर ----------
और फिर वो दिन आ गया जिसका हमें इंतज़ार था, अजीत के दोस्त का छुट्टियाँ न मिलने की वजह से जाना कैंसिल हो गया था और अब हम 3 लोग बचे थे और 2 बाइक, एक मेरी एक शशिकांत की। हमें शुक्रवार की रात में 1 बजे के आसपास अपने ऑफिस वगैरा निपटा कर यात्रा पर निकलना था, रोमांच की वजह से गुरुवार की रात काम चलाऊ नींद आयी, अगले दिन 3 से 12 की शिफ्ट में ऑफिस निपटाया, अजीत गुड़गांव से नॉएडा शशिकांत के यहाँ 11 बजे के आसपास आ गया था। मैं घर पहुँचा, नहाया धोया, और भगवान से सलामती से यात्रा की दुआ माँगी और थोड़ी देर कमर सीधी करने के हिसाब से लेट गया।
10 मिनट में शशिकांत का फोन आ गया कि सारा सामान लेकर उसके घर पर पहुँच जाऊँ वो 2 लोग तैयार हैं। अभी रात के करीब 1 बजे थे, मैंने भगवान के हाथ जोड़े और नेहा को शकुशल आने का वादा करके सारा सामान लेकर चल दिया शशिकांत के घर की तरफ, शशिकांत के घर पहुँच कर उससे और अजीत से मुलाकात की और उसके बाद हम 3 अपने सामान के साथ अपनी बाइकों के पास खड़े थे। अगला काम था समान को बाइक पर बांधना, अजीत और शशिकांत दोनों लोग शशिकांत की अवेंजर 220 cc से जाएँगे और मेरी बाइक जो कि 150 cc है इस पर सारा सामान होगा और मैं इसे चलाऊंगा, रास्ते में 3 लोग आपस में बाइक बदलते रहेंगे ऐसा तय हुआ।
बैग बांधने के बाद हम लोगों ने भगवान का नाम लिया और शशिकांत के घर से चल दिये नॉएडा स्टेडियम की तरफ वहाँ पर कुछ चाय की दुकानें रात में भी खुली रहती हैं तो सोचा एक एक चाय हो जाए फिर निकलेंगे। गर्मी बहुत थी तो वहाँ पहुँचकर चाय वाला मूड कोल्ड ड्रिंक पर आ गया और ये सब निपटा कर करीब 2:30 बजे हम लोगों में बाइक चालू की और मोबाइल होल्डर पर मोबाइल लगा लिया जिसमें नॉएडा स्टेडियम से मुरथल वाले रोड का मैप लगा हुआ था और हम 3 चल दिये इस लंबे से सफ़र पर। मैंने शशिकांत को चलने से पहले बोल दिया था कि मेरे पास सबसे हल्की बाइक है तो मैं 70 - 75 से ज्यादा की गति से नहीं चलूँगा क्योंकि उससे तेज़ चलाने पर बाइक एवरेज अच्छा नहीं देगी और इंजन गरम जल्दी होगा तो बाइक का इंजन सीज भी हो सकता है तो वो लोग मेरे साथ ही रहें। ये बात कहते समय मुझे भी पता था कि शशिकांत ऐसा करेगा नहीं और उसे भी पता था, ख़ैर अब सड़क पर आ ही गये हैं तो जो होगा देखा जाएगा और हम चल दिये।
शशिकांत, मैं, अजीत मुर्थल स्थित सुखदेव ढाबा पर।
नॉएडा से निकलकर हम लोग तेज रफ़्तार से मैप के दिखाए रस्ते पर चलते हुए दिल्ली के अंदर प्रवेश कर गए, मैं शशिकांत का पीछा कर रहा था और शशिकांत मैप का, दिल्ली निकल कर जैसे ही हाईवे आया शशिकांत की बाइक की रफ़्तार बढ़ने लगी मगर मैंने अपना मन बना रखा था की मुझे 70 75 के ऊपर बाइक नहीं चालानी है, ये लोग खुद ही आगे जाकर रुकेंगे, आगे पीछे होते हुए हम लोग चलते रहे और हमने पहला स्टॉप लिया मुरथल जाकर। मैं अपनी कहूँ तो मेरा मुरथल के किसी भी ढाबे पर रुकने का कोई खास नहीं था मगर शशिकांत के कहने पर हम वहाँ रुक गए और सुखदेव ढाबा (जो आज की तारीख में 3 स्टार होटल की तरह है) पर पराँठे और चाय खाने के बाद वहाँ से आगे चल दिए। इस यात्रा पर निकलने से पहले मैंने अपने मन में सोचा था की इस पूरी यात्रा में हम लोग कोशिश करेंगे की पानी की बोतल कहीं न या कम से कम लेनी पड़े इसके विकल्प के रूप में मैं अपने घर से एक स्टील की बोतल साथ लेकर चला था और मैंने उसे यहाँ से भरना शुरू कर दिया था और आगे भी जहाँ रुकेंगे वहाँ भरते जाएंगे।
रात में गाड़ी चलाने में जो सबसे बड़ी समस्या होती है वो है नींद आना, अगर आपको एक सेकंड की भी झपकी लग गयी तो आपके साथ कुछ भी हो सकता है, इस समस्या से बचने के सबसे अच्छा तरीका है साथ वाले से बातचीत करते रहें, चूँकी मैं अकेला था तो मैंने अन्य तरीके अपना रखे थे जैसे च्युइंग गम चबाते रहना या सुपारी चबाते रहना और फिर भी कहीं लगता की नींद का झोंका आ सकता है तो रुक कर चाय पीते या मुँह धो लेते। चलते चलते सुबह हो गयी अब नींद का डर थोड़ा कम हुआ। मनाली का रास्ता चण्डीगढ़ के बगल से निकलता है उससे होते हुए हमने मनाली वाला रास्ता पकड़ा और उस पर काफी दूरी चल लेने के बाद करीब 9 बजे एक ढाबे पर जहाँ सोने के लिए खटिया पड़ी थी वहाँ पर रुके, यहाँ रुकने का मुख्य कारण था थोड़ी देर सोना ताकि उसके बाद पूरा दिन बाइक चलाने में दिक्कत न हो। थोड़ी देर सोने के बाद उठे, नाश्ते में चाय पराँठे खाये और आगे के सफर पर चल दिए।
और हमने हिमाचल में प्रवेश कर लिया।
नॉएडा से मनाली 580 किलोमीटर के आसपास है, इस दूरी को तय करने में बस करीब 14 15 घंटे लगाती है और इतना ही समय हमें भी लगना था। दिन के करीब 1 बजे हमने पंजाब बॉर्डर पार किया और हिमाचल में दाखिल हो गए, यहाँ से पहाड़ शुरू हो जाते हैं, ये हमारे लिए अच्छा और बुरा दोनों संकेत थे, अच्छा इसलिए की पहाड़ में बाइक चलाने का अलग ही मज़ा है, बुरा इसलिए की पहाड़ों में बाइक तेज़ नहीं चला सकते इसलिए ज्यादा समय में कम दूरी तय हो पाती है और अभी हमें बहुत दूर तक जाना था, ऐसा लग रहा था जैसे दूरी कम होने की जगह बढ़ती जा रही है।
चलते रहे और करीब 3 बजे के आसपास एक जगह काफी थक कर रुके और सोचा यहीं खाना भी खा लें तो सामने एक घर में एक खाने की दुकान पर बैठ गए और खाने का आर्डर कर दिया, वहाँ बैठने के बाद हमें समझ आया की ये फ्रिज वाला होटल है जहाँ ज्यादातर चीज़ें न जाने कब की रखी होती हैं और उसी को गरम करके परोसा जाता है, पर अब आर्डर कर चुके थे तो करीब पौन घंटे के इंतज़ार के रखा हुआ खाना गरम करके परोसा गया और उसके रेट भी आसमान को छू रहे थे। खैर पैसे दिए और सोच लिया की आगे हर जगह ढाबे पर ही खाना खांएगे वहाँ ताज़ा खाना सही दामों में मिलता है, बाइक उठायी और आगे बढ़ दिए।
अभी सुन्दर नगर के आसपास पहुँचे थे की इंद्र देव ने हमारी रफ़्तार को विश्राम देने का मन बनाया और बारिश होने लगी तो न चाहते हुए भी हमें रुकना पड़ा, बारिश भी अजीब आगे बढ़ो तो होने लगे और रुको तो रुक जाये। करीब 15 मिनट रुकने के बाद आगे बढ़ दिए और करीब आधे घंटे की यात्रा के बाद एक दम से बहुत तेज़ बारिश होने लगी, तुरन्त बाइक साइड से खड़ी की और एक घर के बाहर एक खाली कमरे में जिसमें जलाने की लकड़ी रखी थी वहाँ आधा घंटे बैठे रहे। जैसे ही बारिश रुकी फिर चल दिए, मुश्किल से 15 मिनट चले होंगे फिर से बारिश शुरू हो गयी तो एक रेस्टोरेंट के बाहर रुकना पड़ा। इस बार की बारिश इतनी तेज़ थी की आधा घंटे में रोडों पर नाले बहने लगे, और कई जगह पहाड़ों से पानी के साथ पत्थर बहने लगे थे। ये सब देखकर ऐसा लगा की अब आज मनाली नहीं पहुँच पाएंगे, आपस में बातचीत की तो यही तय हुआ की बारिश खुलने के बाद चलते हैं जहाँ तक आराम से जाएँगे वहाँ तक चले जाएंगे और फिर वहीं आसपास कहीं रुक लेंगे, मनाली के होटल के एडवांस 500 रु मारे जाते हैं तो मारे जाएं इस समय बारिश से बचना जरुरी है।
यहाँ हम बारिश की वजह से आधे घंटे रुके थे।
काफी तेज़ होती बारिश और रोड पर से बहता बारिश का पानी।
बारिश बंद हुई हम चल दिए और फिर तो आगे बारिश से आँख मिचोली खेलते हुए आगे बढ़ते रहे और करीब 9 बजे कुल्लू पहुँचे। कुल्लू पहुँच कर एक एक चाय पी और फिर आपस में बातचीत की गयी की आगे चलना है या यहीं रुकना है, शशिकांत आगे चलने के पक्ष में था तो हम ने उसकी बात मन ली और सबसे पहले होटल वाले को फोन करके उससे पूछा की अगर हम रात के 10 बजे के आसपास आते हैं तो कोई दिक्कत तो नहीं है, और उससे बात होने के बाद हम आगे बढ़ दिए। बरसात हो जाने की वजह से एकदम से सर्दी हो गयी थी और मैं हाफ टीशर्ट में बाइक चला रहा था, जब ठण्ड बर्दाश्त के बाहर होने लगी तो एक जगह सब लोग रुके और मैंने जो बैग बंधा नहीं था उसे खँगाला तो मेरे हाथ रैन कोट आ गया, मैंने वही पहन लिया और आगे बढ़ चले और आखिरकार हम लोग करीब पौने दस बजे मनाली शहर में दाखिल हुए। एक जगह रूककर गूगल मैप पर होटल का मैप देखा और मोबाइल होल्डर में लगाकर मैप देखते हुए होटल की तरफ बढ़ दिए, हमारा होटल मनाली में हिडिम्बा देवी मंदिर के पास ही था, ये मनाली का एक फेमस टूरिस्ट प्लेस भी है। करीब 10 बजे हम लोग होटल पहुँच गए थे, हमारी हालत ऐसी थी की अब जहाँ बैठे वहाँ बैठे ही रह जायें, जैसे तैसे बाइक पर से सामान उतारा, पन्नी की वजह से बैग भीगने से बच गया था, मैंने चेक इन की प्रक्रिया की। मैंने इस होटल के 2 कमरे 500 रु प्रति कमरे के हिसाब से 4 लोगों के लिए बुक करे थे मगर अब हम 3 ही लोग थे तो मैंने एक ही कमरे में एक गद्दा एक्स्ट्रा लगाने की बात की तो होटल संचालक 300 रु एक्स्ट्रा देने पर मान गया। यानि 1000 रु की जगह यहाँ हमारा 800 में ही काम चल गया।
और हम मनाली पहुँच गए।
मनाली में हमारे होटल की बालकनी।
रूम में पहँचकर सबसे पहले गरम पानी से नहाया और फिर खाना खाने मॉल रोड की तरफ चले गए, ऐसा इसलिए करना पड़ा क्यूँकि हमने होटल के संचालक को खाने के लिए पहले से बोला नहीं था। मॉल रोड की ज्यादातर दुकानें बंद हो चुकीं थीं, वहाँ के एक लोकल बन्दे से पुछा की इस समय खाना कहाँ मिल सकता है तो उसने एक दुकान का नाम बता दिया, वहाँ जाकर मेनू देखा तो दिमाग ख़राब हो गया, वहाँ सबसे सस्ती सब्जी 170 रु की थी और वो थी टमाटर सेव, और न जाने क्यों मुझे ऐसा लगा की यहाँ कुछ भी स्वादिष्ट नहीं मिलेगा तो हमने एक सेव टमाटर आर्डर किया और वो अभी की सबसे घटिया सेव टमाटर की सब्ज़ी थी, उसमें सेव दालमोठ वाले थे। सामने एक सोफ्टी की दुकान से सोफ्टी ली (मुझे सर्दिओं में सोफ्टी खाना बहुत अच्छा लगता है) और चल दिए होटल की तरफ, कल क्या करना है ये कल ही सोचेंगे अभी फ़िलहाल होटल पहुँचकर घोड़े बचकर सोना था।
इस भाग में बस इतना ही, अगले भाग में मनाली से रोहतांग पास होते हुए आगे बढ़ेंगे। ये तो बस सफर की शुरुआत थी असल फिल्म तो अभी बाकी है।
फिर मिलेंगे कहीं किसी रोज़ घूमते फिरते।
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