किन्ही कारणों से अभी ये ब्लॉग इंग्लिश भाषा में उपलब्ध नहीं है। बहुत जल्द इंग्लिश भाषा में भी उपलब्ध कराने का प्रयास करूँगा।
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लद्दाख जाने से सम्बंधित सारी जानकारी के लिए ये ब्लॉग पढ़ना न भूलें। इस यात्रा के पिछले भाग के ब्लॉग लिंक - पहला भाग।
दूसरा दिन:
पिछले 24 घंटे से ज्यादा की थकान थी तो रात में लेटने के बाद तुरंत ही नींद आ गयी, और नींद भी ऐसी आयी की जो एक बार सोये तो फिर सुबह 9 बजे का फोन का अलार्म जो की मेरे ही फोन में लगा था और लगातार बज रहा था पर मुझे सुनाई नहीं दे रहा था। अजीत उस अलार्म को सुनकर उठा और उसने मुझे भी उठा दिया, मेरी एक आदत है सुबह एक बार उठ गया तो फिर दुबारा नहीं सोता चाहे रात में कितना भी देरी से क्यों न सोया हूँ। मैं उठकर सीधे नहाने चला गया, तब तक अजीत शशिकांत ने आधा घंटे की नींद और निकाल ली। मैं नाहा कर बाहर आया और कपड़े पहन कर कमरे से बाहर मनाली का दीदार करने निकल गया और अजीत उसके बाद शशिकांत नहाने चल दिए।
होटल की बालकनी से मनाली के नज़ारे।
मनाली के नज़ारे बेहद खूबसूरत थे, कल रात की बारिश ने मौसम बहुत ही शानदार कर दिया था, होटल के चारों तरफ हरियाली के दृश्य थे, सामने एक ऊँचे से पहाड़ पर बर्फ भी दिख रही थी। सुबह का समय सबसे अच्छा समय होता है बर्फ के पहाड़ देखने का क्यूँकि उस समय बादल ने के बराबर होते हैं, कुछ ऐसा ही दृश्य मैंने सुबह के समय वृद्ध जागेश्वर से भी देखा था बस अंतर इतना था की वहाँ से बर्फ के पहाड़ बहुत दूरी पर थे, ये सभी नज़ारे मुझे मन्त्रमुग्ध कर रहे थे और मैं कोशिश कर रहा था की इनको अपने फोन के कैमरा में कैद कर लूँ। अभी फोन में नेटवर्क भी आ रहा था तो मैंने घर पर फोन करके अपने आगे के प्लान के बारे में बता दिया, और ये भी बोल दिया की इसके आगे शायद ही फोन में नेटवर्क रहे तो अगर किसी नए नंबर से फोन आये तो उठा लेना क्यूँकि यहाँ से आगे जाकर अब होना फोन तो डिब्बा हो जाएगा इस स्थिति में जहाँ भी रुकेंगे वहाँ के लोगों के फोन से ही घर पर फोन कर पाएँगे।
अजीत और शशिकांत नहा धोकर तैयार हो चुके थे, होटल का हिसाब किताब मैंने रात में ही कर दिया था तो बस अब हमें अपने बैग पैक करके होटल से चेकआउट करना था। बैग पैक करके होटल से चेकआउट किया और बाइक पर बैग बाँधने की प्रक्रिया शुरू की, मेरे अँगूठे में रात में लोहे की पत्ती लग गयी थी तो बैग बाँधने का काम अजीत और शशिकांत के ही जिम्मे था। रात में सोने से पहले आज के लिए थोड़ी सी प्लानिंग की थी जिसमें हमने ये तय किया था की यहाँ से आगे जाने के लिए अजीत एक बाइक किराये पर लेगा। ऐसा करने का एक सबसे बड़ा कारण ये था की यहाँ तक की यात्रा में यूँ तो हम 3 आपस में बाइक की अदला बदली करते हुए आये थे मगर फिर भी पीछे सबसे ज्यादा अजीत ही बैठा था, भारत की ज्यादातर बाइक्स में पीछे की सीट बहुत ही कम आराम दायक होती है ये बात हम 3 को पहले से पता थी और अजीत ने ये बात महसूस भी कर ली थी। अब आगे हमें बेहद ख़राब रास्तों पर जाना चलना होगा और चढ़ाई भी बहुत ज्यादा होगी तो उस स्थिति में शशिकांत की बाइक पर अगर 2 लोग जाएँगे तो बाइक तो टें बोल ही जाएगी साथ ही साथ पीछे बैठने वाले को भी वापिस जाकर अपने पिछवाड़े की सर्जरी करवा कर उसमें लोहे की छड़ें और स्प्रिंग डलवानी पड़ेंगी। तो इन सब से बचने के लिए एक बाइक किराये पर लेना ही ठीक रहेगा, ये सोचकर हमने होटल से बाइक उठाई हिडिम्बा माता मंदिर के सामने से माता को झुककर प्रणाम किया और मुख्य सड़क की तरफ चल दिए।
अभी मंदिर पार ही किया था की एक बाइक रेंट पर देने वाली दुकान दिखी, हमने अपनी बाइक्स वहीं किनारे लगा लीं और बाइक रेंट पर लेने के लिए बात करने लगे। अजीत ने एक एवेंजर पसंद की जो की 180cc की थी, जिसका किराया 1000 रु रोज़ था, वैसे अन्य जगहों पर एवेंजर 800 या 900 रु रोज़ पर मिल जाती है पर यहाँ कुछ मँहगाई थी। (बाइक रेंट पर लेने से सम्बंधित सारी जानकारी यहाँ उपलब्ध है)। इस बाइक को रेंट पर लेने के लिए हमें कम से कम 6 दिन का किराया यानी की 6000 रु और सिक्योरिटी के रूप में 10,000 रु जमा करने होंगे, ये कम से कम 5 या 6 दिन के किराए वाला नियम यहाँ ज्यादातर जगह है। पैसे के लेन देन और लिखा पढ़ी के बाद बाइक की कुछ फोटो हमने अपने फोन में ले लीं ताकि बाद में ये न हो की हमने कुछ तोड़ फोड़ कर दी है और हम वहाँ से चल दिए रोहतांग जाने वाले रोड की तरफ, और उस तरफ कैसे जाना है ये हमें शशिकांत बता रहा था क्यूँकि वो इसके पहले भी यहाँ आ चुका था।
मनाली की भीड़भाड़ से जैसे ही हम ब्यास नदी को पार करके रोहतांग जाने वाली रोड पर पहुँचे तो सामने ऊँचे ऊँचे पहाड़ दिखने लगे जिनके शिखर पर अभी भी बर्फ लदी हुई थी, मेरे ज़हन में शशिकांत के शब्द गूँज रहे थे - एक बार मनाली से रोहतांग जाने वाली रोड पर पहुँच जाएगा तो ये कुल्लू और मनाली वाले नज़ारे फीके लगने लगेंगे और वाकई कुछ ऐसा ही मुझे महसूस हो रहा था। रोड पर गाड़िओं की अच्छी खासी भीड़ थी, धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए उसी रोड पर जो सबसे पहला पेट्रोल पंप आया उस पर तीनों बाइक की टंकियाँ फुल करा लीं। इन तीनोँ बाइक में सबसे अच्छा एवरेज मेरी बाइक ने दिया था, यही फायदा है 150 cc की बाइक का। शशिकांत जो की यहाँ पहले भी आ चूका था तो पेट्रोल डलवाने से पहले मैंने उससे पूछ लिया था की भाई यहाँ से जितने भी बाइकर आगे जा रहे हैं वो सभी कट्टियों में पेट्रोल लेकर आगे जा रहे हैं तो अपन को क्या करना है? शशिकांत ने बताया की अगला पेट्रोल यहाँ के बाद जिस्पा के आसपास है तो यहाँ से चल कर वहाँ पेट्रोल भरवा लेंगे और उसके बाद सीधे लेह पहुँच कर पेट्रोल भरवा लेंगे। मुझे अपनी बाइक का तो पता था की इसमें करीब 13 लीटर के आसपास पेट्रोल है और अगर मैं 40 के एवरेज से भी जोड़ूँ तो 40*13 यानि करीब 500 किलोमीटर तो मेरी बाइक चली ही जाएगी तो मैं अगर जिस्पा में पेट्रोल न भी लूँ तो काम चल जाएगा पर इन दोनों की बाइक पर मुझे थोड़ा संशय था क्यूँकि इनका एवरेज मेरी से कम था, खैर अब जो होगा देखा जाएगा ये सोचकर हमने कट्टी में पेट्रोल नहीं लिया और आगे कहीं बाइक की हवा चेक करवाने के हिसाब से चल दिए।
थोड़ा आगे जाकर एक पंचर सुधरने की दुकान पर मैंने तीनों बाइक में हवा चेक करवाई, इतनी देर में शशिकांत एक दूकान से अपने लिए बर्फ़बारी झेलने वाली ड्रेस किराये पर ले आया (हम तीनों में सबसे ज्यादा ठण्ड इसी को लगती है), न जी न वहाँ बर्फ़बारी नहीं मिलेगी, ये ड्रेस ठण्ड से बचने के लिए है। अब हमें कहीं पर नाश्ता करना था, शशिकांत ने कहा एक दुकान है आगे हम लोग वहाँ नाश्ता करेंगे, पहले से आये हुए बन्दे के साथ आने का यही फायदा है की उसे पता होता है कहाँ क्या अच्छा मिलता है। आगे एक दुकान जो की एक बड़े से होटल के नजदीक थी हम लोग वहाँ रुक गए, नाश्ते में आलू के पराँठे, चाय का आर्डर दे दिया। सामने एक मेडिकल स्टोर था, शशिकांत ने मुझे वहाँ से डाईमॉक्स टेबलेट, और ऑक्सीजन का छोटा सिलिंडर के बारे में पता करने के लिए भेजा, वहाँ जाकर पता लगा की ये चीजें हमें मनाली के मुख्य बाजार से ही लेनी थीं, अब आगे केलोंग में मिल सकती हैं। मैं वापिस आ गया, डाईमॉक्स टेबलेट का तो मुझे समझ आ रहा था पर ऑक्सीजन का छोटा सिलिंडर क्यों चाहिए ये सोचकर मन में कुछ डर के भाव भी आ रहे थे। खैर अभी सामने नाश्ता रखा था तो सब भूल के 2 पराँठे नाप दिए, पराँठे बहुत स्वादिष्ट थे, इनमें आलू के भरते में बहुत बारीक कटी पत्ता गोभी भी डली थी, जो की मोमोज की चटनी के साथ बेहद स्वादिष्ट लग रही थी। नाश्ते के बाद हमने तीनों बाइक पर बराबर सामन बाँधा और भगवान का नाम लेकर चल दिए इस लम्बी सी यात्रा पर।
शशिकांत सबसे आगे, मैं और अजित उसके पीछे पीछे चल दिए, रास्ते में हमें एक जगह रोहतांग दर्रा (पास) से पहले अपने परमिट चेक करवाने थे जो की हमने ऑनलाइन ले लिए थे। यहाँ थोड़ी सी लाइन थी तो हमें 5 10 मिनट का ब्रेक मिल गया था, परमिट चेक करवाने के बाद हमने आगे बढ़ने से पहले कुछ नियम बनाये, ये इसलिए जरुरी थे क्यूँकि अब हमारे फोन यहाँ से आगे काम नहीं करेंगे और हम अलग अलग रफ़्तार से आगे बढ़ेंगे तो हो सकता है की हम में से कोई आगे पीछे रह जाए तो ऐसी स्थिति में अगर पीछे वाले को आगे वालों को रोकना है तो वो लगातर रुक रुक कर हॉर्न बजाएगा (पहाड़ों में घुमावदार रोड पर हॉर्न काफी दूर तक सुनाई पड़ता है) और वो ऐसा तब तक करेगा जब तक की आगे वाले सुनकर रुक न जाएं। जो सबसे आगे है वो हर 5 मिनट में बाइक के साइड मिरर में पीछे देखेगा की साथ वाले पीछे हैं या नहीं और उनसे उनका हालचाल पूछने के लिये थम्ब्स अप करके हाथ उठाएगा और उसका जवाब थम्ब्स अप आएगा अगर वो ठीक है नहीं तो थम्ब्स डाउन, उस स्थित में आगे वाले तुरंत रुक जाएँगे। इन नियमों को ध्यान में रखकर हम लोग आगे बढ़ दिए।
मनाली पार करने के बाद घाटी के नज़ारे कुछ ऐसे थे।
चेकपोस्ट पार करने के बाद हम आगे बढ़ दिए और अब हमें घाटी के शानदार नज़ारे दिखने लगे थे, एक जगह छोटा सा जाम लगा था वहाँ शशिकांत ने हमें कहा की आगे एक से एक शानदार नज़ारे देखने को मिलेंगे तो जहाँ कुछ बहुत अच्छा दिखे वहाँ बाइक रोक लेना मगर नज़ारे देखने के चक्कर में रोड पर से नज़र मत हटाना क्यूँकि जहाँ सावधानी हटी समझो दुर्घटना घटी। जाम खुला और हम चल दिए, हमारे ठीक सामने एक बेहद ऊँचा पहाड़ था और उस पहाड़ पर जगह जगह छोटे और बड़े झरने बह रहे थे, ये दृश्य कुछ ऐसा था जैसे कुदरत ने धरती को दुल्हन सा सजाया हो, शब्दों में इस दृश्य को बयाँ करना नामुमकिन सा है। ये सब देखते हुए हम लोग आगे बढ़ते रहे, आगे बढ़ने पर ये पहाड़ और झरने विशालकाय होते जा रहे थे और इसके सामने हम मानव तुच्छ से दिख रहे थे, शायद ये हमारे लिए प्रकृति का सन्देश है की हम प्रकृति के सामने तुच्छ से हैं, अगर हम इस प्रकृति का आदर नहीं करेंगे तो पता नहीं लगेगा कब प्रकृति हमें अपने आगोश में ले लेगी।
मंदिर से घाटी के नज़ारे।
थोड़ा और आगे चलने पर पैराग्लाइडिंग करते हुए लोग दिखने लगे, कभी मौका लगा तो मैं भी हाथ अजमाऊँगा, कितना रोमाँचकारी होता होगा पक्षिओं की तरह आसमान में उड़ना!! इन पक्षिओं की तरह उड़ते हुए लोगों को पार करके हम लोग आगे बढे और फिर एक जगह पर जहाँ काफी सारे लोग रुके थे शशिकांत ने हमें वहाँ रुकने के लिए कहा और हमने बाइक किनारे लगा दी। इसी रास्ते में एक बहुत ही बड़ा झरना "जोगिनी फाल्स" भी है मगर हमारे पास समय की कमी थी तो हम वहाँ नहीं जा पाए, मंदिर के दर्शन पश्चात वहाँ आसपास की कुछ तस्वीरें निकालीं और फिर वहीं पास में एक दुकान पर शशिकांत ने चेहरे को ढँकने के लिए कैप, बाइक पर लगाने के लिए फ्लैग्स आदि लिए और उन फ्लैग्स को बाइक पर लगाने और कैप से मुँह ढँकने के बाद हम आगे चल दिए। यहाँ ठण्ड बहुत ज्यादा होती है, अगर आप अपना चेहरा ढँक कर नहीं चलते हैं तो चेहरे की खाल बहुत बुरी तरह फट जाती है।
रास्ते में कहीं यूँही मन हुआ एक तस्वीर खिंचवाने का।
मनाली से रोहतांग पास कुछ 55 किलोमीटर दूर है, मनाली आने वाले ज्यादातर पर्यटक बर्फ देखने की ख्वाहिश में यहाँ तक आते हैं, उन लोगों के लिए यही जगह लेह लद्दाख के सामान है। इसके आगे के रास्ते सर्दिओं में बंद हो जाते हैं, और अत्यधिक बर्फ़बारी की स्थिति में यहाँ तक आना भी सम्भव नहीं हो पाता। यहाँ तक आने वाले रास्ते में अच्छा खासा ट्रैफिक और कई जगह छोटा मोटा जाम भी लगा रहता है, हमने ये दूरी आराम से आते हुए करीब 2 घंटे में तय की और रोहतांग से थोड़ा सा पहले "रानी नाले" पर स्टॉप लिया। यहाँ में आपको बताना चाहूँगा की इस पूरी यात्रा में आपको कई जगह रोड पर ग्लेशियर का पिघलता हुआ पानी बहता हुआ दिखेगा, इन्हे यहाँ नाले के नाम से जाना जाता है, और हर एक नाले का नाम भी होता है।
रानी नाले के सामने मैं।
इस साल बर्फ़बारी बहुत ज्यादा हुई है जिस वजह से मनाली के बाद जो पहाड़ों पर ग्लेशियर हैं इनमें बर्फ काफी ज्यादा है, ठीक ऐसा ही इस रानी नाले का हाल था, इसके पहाड़ की तरफ वाली साइड में अभी भी 15 से 20 फ़ीट ऊँची बर्फ की दीवार है, उसके ऊपर से बर्फ पिघल कर पानी बन कर नीचे आ रहा है और नीचे आकर वो नाले की तरह बह रहा है। कुल मिलाकर गज़ब का दृश्य है, बर्फ की इस दीवारों को भी कुछ आशिक़ रुपी मनुष्यों ने नहीं छोड़ा है और फलाने लव्स ढिमाके बर्फ की दीवार में गोद दिया है वो भी तीर लगे हुए दिल के साथ, महान हैं ये लोग, सरकार को ऐसे लोगों को कोई इनाम वगैरा देना चाहिए :P
बर्फ की दीवार, इस फोटो को ध्यान से देखेंगे तो आपको फलाने लव्स ढिमाके भी दिख जाएगा।
हमने यहाँ अपनी बाइक किनारे लगा दीं और अपने कैमरा निकाल लिए और लग गए तस्वीरेँ निकालने में, 3 लोग गज़ब गज़ब पोज़ दे रहे थे और अगले 10 मिनट तक फोटोग्राफी चलती रही। नीचे बादल भी कोई खेल खेल रहे थे और शायद उस खेल का नाम उमड़ घुमड़ रहा होगा, बादलों का समूह कभी दिखता और कभी गायब हो जाता या कभी हमारे बगल से ऐसे निकल जाता जैसे हमारे हालचाल पूछने आया हो, कुछ देर इस खेल को देखने के बाद हम लोग आगे चल दिए।
उमड़ घुमड़ का खेल खेलते हुए बादल।
रोहतांग पास पर मैं।
रोहतांग पास के सामने पहाड़ पर दिखती बर्फ।
कुछ देर और चलने के बाद हम अपने पहले पड़ाव यानी की रोहतांग पास पर पहुँच गए थे, यहाँ पर ऐसा माहौल था जैसे आधा मनाली यहीं हो, हर तरफ गाड़ियों का हुजूम और बर्फ़बारी के खेलों में पहने जाने वाले कपड़े पहने लोग दिखाई दे रहे थे। रोहतांग पास का जो बोर्ड है उस पर फोटो लेने वाले लोगों का नंबर लग रहा था, हमने अपनी बाइक साइड से पार्क की और मैंने कैमरा वाला बैग निकाल लिया और हम लोग चल दिए पहाड़ की तरफ कुछ तस्वीरें निकालने। यहाँ पर कुछ स्थानीय लोग पर्यटकों को विभिन्न प्रकार के खेल खिलवा रहे थे जिसमें प्रमुख थे ट्यूबस्लेज़जिंग, हॉर्स राइडिंग आदि। हमने पहाड़ पर थोड़ी ऊँचाई चढ़ने के बाद कुछ तस्वीरें निकालीं, यहाँ भी बादल अपना उमड़ घुमड़ खेल खेल रहे थे।
कुछ देर कैमरा पर हाथ आज़माने के बाद हमने वहाँ एक छोटी सी दुकान पर चाय पी, यहाँ से चाय के दाम 20 रु प्रति चाय हो गए थे। चाय पीने के बाद हम रोहतांग पास के बोर्ड की तरफ बढ़ दिए, वहाँ अपना नंबर आने पर कुछ तस्वीरें निकालीं और फिर कैमरा का बैग पैक किया और आगे बढ़ने की तैयारी करने लगे। शशिकांत ने बताया की अब इसके आगे हमें ट्रैफिक न के बराबर मिलेगा, अब आगे सिर्फ हमारे जैसे बाइकर, चुनिन्दा पर्यटक कार, सेना के ट्रक, पेट्रोल के टैंकर और सामान ले जाने वाले ट्रक मिलेंगे और वो भी बहुत कम, एक तरह से यहाँ से हमारी असल यात्रा शुरू होती है, यहाँ से हम नो मैन्स लैंड में प्रवेश करने वाले हैं, हम 3 बाइक पर सवार हुए, भगवान का नाम लिया और आगे बढ़ दिए।
और रोहतांग पास ने हमें इस नज़ारे के साथ विदा किया।
यात्रा के इस भाग में बस इतना ही, जल्द लेकर आऊँगा अगला भाग, जिसमें आपको लेकर चलूँगा रोहतांग पास से चलकर जिस्पा तक की यात्रा पर।
फिर मिलेंगे कहीं किसी रोज़ घूमते फिरते।
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