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लद्दाख जाने से सम्बंधित सारी जानकारी के लिए ये ब्लॉग पढ़ना न भूलें। इस यात्रा के पिछले भाग के ब्लॉग लिंक - पहला भाग, दूसरा भाग।
थोड़ी देर रोहतांग पास पर रुकने के बाद वहाँ से आगे चल दिए और वहाँ से आगे बढ़ते से ही शशिकांत ने जैसा कहा था ठीक वैसा ही हुआ, रोड एक दम से खाली हो गयी, अब ज्यादातर गाड़ियाँ बाइक थीं जिन पर हमारे जैसे लोग लेह की तरफ जा रहे थे। यहाँ से आगे बढ़ने पर हर एक मोड़ पर इतने गजब नज़ारे दिख रहे थे की लग रहा था हर मोड़ पर रुक जाओ और हम कर भी ऐसा ही रहे थे क्यूँकि आज हमें बहुत ज्यादा दूरी तय नहीं करनी थी तो समय की इतनी ज्यादा समस्या नहीं थी। अभी मुश्किल से 20 25 मिनट चले होंगे की रोड पर एक जगह डायवर्सन आया और शानदार सी ये रोड एक कच्चे, पत्थर वाले रास्ते में तब्दील हो और हमारी बाइक की रफ़्तार 20 पर आ गयी। लम्बे सफर में सबसे मुश्किल होता है ऐसी रोड पर गाडी चलाना, ये आपका काफी समय खाती है, बाइक की ऐसी तैसी कर देती है और शरीर में दर्द भी होने लगता है वो अलग, ख़ैर अब ये सब हमारे इस सफर के साथी हैं तो हमें ऐसे रास्तों को भी पर करना ही होगा। अब हम बाइक 2, 3 गियर में आगे बढ़ाने लगे, थोड़ा आगे चलने के बाद हमें आगे से सेना का एक काफिला आता दिखा, यहाँ रोड काफी सँकरी थी तो हम लोगों ने बाइक साइड में खड़ी करके सेना के वाहनों को निकलने देना सही समझा।
उस बेहद ख़राब रोड पर जैसे ही सेना के वाहन हमारे पास आने लगे मेरा सीधा हाथ उन्हें सालाम करने की मुद्रा में एक दम से उठ गया, मन में जो था उसे दिमाग से पहले हाथ ने समझ लिया था और फिर हम 3 ही सलाम की मुद्रा में तब तक खड़े रहे जब तक पूरा काफिला गुज़र नहीं गया, हमें सलाम की मुद्रा में खड़ा देख सेना के जवान भी हमें सलाम करते हुए आगे बढ़ रहे थे। जहाँ तक मेरी समझ है सेना के जवानों के बलिदान के आगे सब कुछ छोटा है, इसके बदले में वो इस सम्मान के हक़दार तो हैं ही, इसका बाद जहाँ भी हमें सेना का एक ट्रक भी जाता दिखा हम उन्हें सलाम करके ही आगे बढे। सेना के इस काफिले के निकल जाने के बाद फिर से रोड सुनसान हो गयी जिस पर हमारे जैसे कुछ चंद बाइकर ही दिख रहे थे। थोड़ा आगे बढ़ने पर रोड थोड़ी सही हुआ तो हमने बाइक की रफ़्तार थोड़ी सी बढ़ा ली और अब हम हवा से बातें करते हुए आगे बढ़ रहे थे की तभी एक मोड़ पर बेहद ही शानदार नज़ारे दिखे तो तुरंत हमने रोड के किनारे बाइक खड़ी कर दी और कुछ तस्वीरें निकालने में जुट गए।
रास्ते भर ऐसे ही नज़ारों को देखते हुए आगे बढ़ते रहे।
अब इस रास्ते पर जगह जगह हर मोड़ पर इतने शानदार नज़ारे दिख रहे थे की समझ नहीं आ रहा था क्या देखें और क्या छोड़ें!! रुकते रुकते हम आगे बढ़ते रहे और करीब दिन के 02:30 बजे के आसपास "कोकसर" नामक स्थान पर पहुँच गए थे, यहाँ पर एक चेक पोस्ट था जहाँ हमें अपने कागज दिखवाने थे और एंट्री भी करवानी थी, चूँकि अब खाना खाने का समय हो गया था तो गाड़ी के कागजात दिखवाने से पहले ही शशिकांत ने एक जगह पर बाइक रोककर रोड के किनारे मैदान में लगाने को कहा और हमने वैसे ही किया। फिर उसने कहा की हम यहाँ खाना खाकर आगे बढ़ेंगे तो मुझे ऐसा लगा जैसे की शशिकांत ने मेरे मन की बात सुन ली हो। खाना कहाँ खाना है ये शशिकांत ने तय किया क्यूँकि उसे पता था की यहाँ खाना अच्छा कहाँ मिलेगा, हम लोग उसके पीछे पीछे चलते हुए चेक पोस्ट की चुंगी के पास स्थित एक दुकान पर पहुँच गए और हाथ मुँह धोकर वहाँ पड़ी टेबल पर डेरा जमा लिया।
कोकसर चेकपॉइंट।
कोकसर चेकपॉइंट के पास यहाँ हमने खाना खाया था।
शशिकांत ने पूछा की खाने में क्या क्या मिल जाएगा? तो उसने कई सारे आइटम गिना दिए और आखिर में उसने बताया की थाली भी मिल जाएगी, थाली सुनकर ऐसा लगा जैसे अन्धे को आँखें मिल गयी हों, तुरंत 3 थाली का आर्डर दे दिया और तब तक हम वहीं रोड के किनारे बेंचों पर बैठकर उस जगह की खूबसूरती को निहारने लगे। अगले 10 मिनट में हमारा आर्डर आ गया था और बरसों के भूखों की तरह खाने पर टूट पड़े, थाली में दाल, कढ़ी, सूखी सब्जी, चावल और रोटी थीं, तबियत से खाना खाया और उसके बाद चाय का ऑर्डर कर दिया, चाय पीने के बाद बिल चुकता किया और चेक पोस्ट पर कागज चेक करवा के आगे बढ़ दिए।
जैसे जैसे हम आगे बढ़ते जा रहे थे वैसे वैसे नज़ारे और भी शानदार और दिलकश होते जा रहे थे। पहाड़ों की एक खासियत है की जब भी आप इनको नज़दीक से देखने और महसूस करने की कोशिश करेंगे आपको इनका एक न एक नया रंग और रूप दिखाई देगा। मैंने अक्सर लोगों को कहते सुना है - पहाड़ तो सब जगह के एक जैसे होते हैं फिर पता नहीं क्यों लोग साल में अनेक बार अलग अलग जगह के पहाड़ देखने जाते हैं? इन लोगों के लिए मेरा जवाब ये है की आप ने पहाड़ों को सिर्फ दूर से देखा है, उनकी तस्वीरें लीं हैं पर कभी आपने पहाड़ों को महसूस नहीं किया, न ही उन्हें समझा है, अगर आपने ऐसा किया होता तो आप समझ पाते की हर पहाड़ दूसरे पहाड़ से जुदा होता है, साल के अलग अलग महीनों में पहाड़ों का अलग अलग स्वरुप होते हैं। उत्तराखण्ड के पहाड़ हिमाचल के पहाड़ों से अलग हैं, मनाली के आगे निकलने पर जो पहाड़ मिलते हैं उनका स्वरुप मनाली के पहाड़ों से अलग है। मध्यप्रदेश में भी कई जगह पहाड़ हैं वो बिल्कुल अलग हैं, मगर ये अंतर समझने के लिए आपको पहाड़ों को महसूस करना होगा उन्हें जीना होगा।
रास्ते के इन अलग अलग पहाड़ों को देखकर मुझे समझ आ रहा था की आखिर क्यों हर घुमक्कड़ अपने जीवन में कम से कम एक बार स्वर्ग सामान इस धरती पर आने की इच्छा करता है, और जो एक बार यहाँ आ जाता वो बार बार यहाँ आने की कोशिश करता है, ये जगह है ही इतनी खूसूरत की यहाँ कितनी भी बार आ जाओ वो कम ही है। मन में यही सारी ख्याल थे और अब रोड काफी शानदार था तो हम तेजी से आगे बढ़ रहे थे।
तस्वीर में है अजीत, इस मोड़ पर हम काफी देर बैठे रहे थे।
थोड़ा आगे चलने के बाद एक जगह एक शानदार सी रोड पर एक बेहद खूबसूरत सा मोड़ आया और शशिकांत ने हमें वहाँ रुकने का इशारा किया, हमने रोड के किनारे पर बाइक खड़ी कर दी। शशिकांत ने कहा की अब यहाँ से जिस्पा ज्यादा दूर नहीं है तो थोड़ी देर यहाँ रुक कर फिर आगे बढ़ेंगे, और हमने उसकी बात को मानकर मैंने पानी को बोतल निकाली और पानी पीकर बैग में बोतल वापिस रखी और वहीं रोड किनारे हम 3 लोग बैठ गए। हमारे ठीक सामने एक बहुत ही ऊँचा पहाड़ था, और पीछे शानदार सी रोड और उसके बगल से मिट्टी के टीले और उसके पीछे भी एक पहाड़ था, रोड पर वाहन वही इक्का दुक्का थे, कुल मिलाकर यहाँ हम 3 ही लोग थे। यहाँ हमें इस बात की कतई फ़िक्र नहीं थी की जमीन पर बैठने से हमारे कपडे गंदे होंगे, और हम 3 आराम से वहीं रोड किनारे लेट गए। शशिकांत ने अपना फोन निकाल लिए और अजीत उसके बताये अनुसार उसके फोटो निकालने में लग गया, कुछ फोटोज में मैंने भी जगह बना ली थी।
आपने अक्सर फिल्मों में देखा होगा की नायिका नायक से बोलती है की चलो हम किसी ऐसी जगह चलते है जहाँ हमारे दोनों के अलावा कोई न हो। हम अभी ठीक ऐसी ही जगह पर थे जहाँ सिर्फ हम 3 लोग थे और कभी कभार इक्का दुक्का गाड़ियाँ रोड से निकल जाती थीं। हमने रोड पर विचरते हुए भी कुछ तस्वीरें निकालीं, और यहाँ वहाँ फिरते रहे। इसी बीच एक अम्मा दूर से आती दिखाई दीं जो की उम्र से वृद्ध थीं मगर पहाड़ों के लोग बहुत मजबूत होते हैं और उन्हें देखकर भी ये समझ आ रहा था, अगले 5 मिनट में वो हमारे पास आ गयी और हमने उन्हें रोककर उनसे बातचीत शुरू की। अम्मा ने हमें बताया की वो यही पास के एक गाँव में रहती हैं और कुछ काम से इधर आयीं थीं और अब वापिस जा रहीं हैं। हमने उनसे उनके पहाड़ों के जीवन के बारे पूछा तो उन्होंने बताया की ये लोग साल के लगभग 6 महीने बर्फ़बारी की वजह से बाकी दुनिया से कट जाते हैं मगर फिर भी इन्हें अपने इस जीवन से बहुत ज्यादा शिकायत नहीं है। जो थोड़ी बहुत शिकायत है वो ये है की उनके गाँव में भी एक अस्पताल और स्कूल हो ताकि किसी इंसान को किसी बीमारी की वजह से दुनिया न छोड़नी पड़े और उनके बच्चे भी अच्छी शिक्षा ले सकें, बहुत ही अच्छी सोच थी उनकी। मैंने भी उनके साथ ये दुआ की, उनकी ये शिकायत जल्द दूर हो जाये और अम्मा आगे बढ़ चलीं।
सूर्य देवता की तरफ निगाह गयी तो हमें महसूस हुआ की अब हमें भी आगे बढ़ना चाहिए और हमने बाइक चालू की और तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ने लगे, अगला स्टॉप लिया टांडी स्थित पेट्रोल पंप पर और 3 लोगों ने बाइक की टंकी खोलकर देखा की पेट्रोल की क्या स्थित है तो पाया की 3 ही बाइक में अभी बहुत कम पेट्रोल खर्च हुआ है और लेह तक ये आराम से जा सकती हैं (जो की बाद में पता लगा हमारी ग़लतफ़हमी थी) तो हमने टंकी बंद की और बाइक चालू करके आगे बढ़ दिए। थोड़ी देर चलने के बाद हम लोग केलोंग पहुँच गए, वहाँ पर मुख्य रोड से एक रोड शहर के अंदर जा रही थी, वहाँ पास में एक मंदिर था और गाड़ियाँ सुधारने की दुकानें आदि भी थीं।
केलोंग में प्रवेश करते हुए।
रूककर हमने ये तय किया की यहाँ से डाइमोक्स की गोलियाँ और ऑक्सीजन का छोटा सिलिन्डर अगर मिल जाये तो ले लिया जाये क्यूँकि यहाँ से आगे बढने पर अब जो भी मिलेगा वो हमें 400 किलोमीटर के बाद लेह में जाकर ही मिलेगा। इस काम के लिए शशिकांत ने अजीत को बाइक से भेजा और हम लोग वहीं मंदिर के चबूतरे पर बैठ गए। फोन निकला तो देखा की अभी शशिकांत के एयरटेल वाले नंबर में नेटवर्क आ रहा था तो हमने घर पर फोन करके बात करके अपने हालचाल बता दिए। कुछ देर में अजीत वापिस आ गया और अब हम लोग आगे बढ़ने के लिए तैयार थे, हम काफी ज्यादा ऊँचाई पर थे और इतनी ऊँचाई पर सूर्य देवता भी थोड़ी देर से विदा लेते हैं तो अभी अच्छा खासा उजाला था।
यहाँ से चलने के बाद हम लोगों जिस्पा में प्रवेश किया और अब शशिकांत सबसे आगे था और उसने धीरे चलने का इशारा कर दिया था, शायद वो किसी चीज की खोज में था। थोड़ा आगे चलने के बाद एक होमस्टे जिसका नाम था - रोलिंग स्टोन जिस्पा, के सामने शशिकांत ने बाइक रोकने का इशारा किया, हुमने रोड के किनारे पर बाइक खड़ी करदी, शशिकांत होमस्टे वाले से बात करने चला गया। शशिकांत यहाँ पहले रुक चुका था तो उसे यहाँ के रेट पता थे, शशिकांत ने कैंप के लिए पूछा तो मालिक ने 1000 रु 3 लोगों के लिए माँगे और शशिकांत ने 600 रु 3 लोगों के लिए (200 रु प्रति व्यक्ति) में कैंप तय किया और हमने बाइक पर से सामान उतारना शुरू कर दिया।
सामान बाइक से उतारकर हमने कैंप में रख दिया और उसके बाद हाथ मुँह धोकर होमस्टे के पार्क में रखी कुर्सिओं पर बैठ गए, चाय का आर्डर पहले ही दे दिया था तो अगले 5 मिनट में चाय भी आ गयी। अभी हम एक छोटे से होमस्टे के पार्क में बैठे थे जो की चारों तरफ से पहाड़ों के बीच था, होमस्टे के सामने मुख्य रोड को पार करके बमुश्किल 300 400 मीटर की दूरी पर एक नदी बह रही थी, लोगों के नाम पर यहाँ आसपास कुल 10 12 लोग थे, कुल मिलाकर हम ख्वाबों की तरह दिखने वाली एक दुनिया को जी रहे थे।
चाय पीते पीते हल्का सा अँधेरा हो गया था, अजीत ने कहा की चलो नदी तक होकर आते हैं, हमने तुरंत चप्पलें पहनी और चल दिए। रोड पार करके हम लोगों ने मोबाइल की टोर्च लाइट जला ली और रास्ता देखते हुए आगे चलते रहे। जैसे जैसे हम आगे बढ़ते जा रहे थे नदी का शोर तेज़ होता जा रहा था, न जाने क्यों मुझे रात में नदी के पानी का शोर डरावना सा लगता है। चलते चलते हम लोग नदी के पानी तक पहुँच गए थे, पानी में एक पत्थर फेंक कर देखा तो समझ आ गया की नदी यहाँ पर बहुत ज्यादा गहरी है तो पानी से उचित दूरी बना कर एक जगह खड़े हो गए।
अभी हम यहाँ के खुमार में खोये ही थे की हमें सामने थोड़ी दूरी पर एक एसयूवी दिखी जिसके बगल से कुछ लड़के कैंप लगाए हुए बैठे थे, उन्होंने गाड़ी से एक तार कैंप तक लगाया हुआ था जिससे एक छोटा सा बल्ब कैंप के अंदर जल रहा था। बस यही चीज़ थी जो हमारी इस यात्रा में हम नहीं कर पाएंगे क्यूँकि हमारे पास खुद के टेंट आदि नहीं है। उनको देखकर मुझे लगा की अगर कभी मौका मिला तो जीवन में एक बार ऐसे भी लद्धाख आऊँगा।
थोड़ी देर वहाँ बैठने के बाद हम लोग वापिस अपने कैंप में आ गए, रात के खाने का ऑर्डर दे दिया और थोड़ी देर आराम करने के हिसाब से कैंप में लेट गए। करीब 15 20 मिनट के बाद मैंने अजीत, शशिकांत को उठाया (ये 2 मिनट भी लेटे तो सो जाता है) और फिर हम 3 होमस्टे के बगीचे की एक टेबल पर बैठे हुए इस जगह की रात की खूबसूरती को महसूस कर रहे थे। शशिकांत ने अपने मोबाइल में बहुत हल्की आवाज में गाने चला दिए थे, कभी तेज़ और कभी हल्की हवा चल रही थी, नदी की आवाज़ हमें सुनाई दे रही थी, कुल मिलाकर ये ऐसा माहौल था की काश ये रात यहीं थम जाए!!
थोड़ी देर में खाना तैयार था और हमने वहीं बगीचे की मेज पर खाना लगाने को बोल दिया, बहुत कम ऐसे मौके मिलते हैं जब हमें ऐसे माहौल में खुले आसमान के नीचे खाना खाने का अवसर मिलता है और मैं इसे गँवाना नहीं चाहता था। खाना खाने के बाद हम लोग कुछ देर वहीं बैठे रहे, रात के करीब 11 बज चुके थे अब हमें सोने जाना था क्यूँकि अगले दिन हमें सुबह जल्दी उठकर आगे के लिए निकलना था। मैंने अभी तक पहाड़ों में एक दिन में 250 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तय नहीं की थी पर कल हमें एक दिन में करीब 400 किलोमीटर की दूरी तय करनी है तो जितना जल्दी निकलेंगे उतना अच्छा होगा और यही सब सोचते हुए हम अपने कैंप में सोने चले गए।
हमारा कैंप।
सुबह 05:30 बजे अलार्म बजा तो नींद खुल गयी और मैं सबसे पहले नित्य क्रिया को उठा और 15 मिनट में तैयार होकर वापिस आ गया और मैंने 2 अलसाये लोगों को नींद से जगाने का प्रयास शुरू किया जिसमें मुझे 15 मिनट का समय लगा। रात में सोने से पहले ही हमने यहाँ रुकने का पूरा हिसाब किताब कर दिया था तो अब हमें अपने बाइक पर सामान बाँधना है और यहाँ से निकलंना है, आज आगे की यात्रा परीक्षा की तरह है, एक दिन में हमें 380 किलोमीटर के करीब दूरी तय करनी है वो भी पहाड़ों में।
यात्रा के इस भाग में बस इतना ही, जल्द लेकर आऊँगा अगला भाग, जिसमें आपको लेकर चलूँगा जिस्पा से लेह तक की यात्रा पर।
फिर मिलेंगे कहीं किसी रोज़ घूमते फिरते।
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