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इस यात्रा का पहला भाग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
नैनीताल - ये शब्द सुनते से ही मेरे दिमाग में कुछ तस्वीरें बनने लगती थीं और न चाहते हुए भी मेरे कानों में मुझे ये लाइन्स सुनाई देने लगीं।
हनुमानगढ़ी के दर्शन कर लाएंगे मेम आपको, टिफ़िन टॉप जाएंगी क्या?
मुझे किस्से कहानियाँ सुनने का बहुत शौक है, वो अलग बात है कि आजकल समय नहीं दे पाता। एक दौर था जब मैं हर रोज कहानियाँ सुना करता था, मेरे पसंदीदा कहानीकार में से एक हैं नीलेश मिसरा जी, गज़ब की कहानियाँ सुनाते हैं, इनकी हिंदी पर पकड़ भी बेहतरीन है। मुझे इनकी कहानियाँ सुनना बहुत पसंद है। इनकी एक कहानी जो कि मैं अब तक करीब पचासों बार सुन चुका हुँ जिसका नाम है "फिर मिलेंगे", जो कि 3 भागों में है गज़ब कहानी है वो। इस कहानी के जो 2 मुख्य किरदार हैं उनमें किसी वजह से बातचीत बन्द हो जाती है, कहानी का नायक नायिका को मनाने की कोशिश में उसके पीछे पीछे हर जगह जाता है, ऐसे ही एक बार नायिका नैनीताल आती है तो नायक उसके पीछे नैनीताल भी आता है। मैंने नैनीताल के प्रथम दर्शन इसी कहानी से करे थे।
पढ़कर थोड़ा अजीब लगा होगा आपको मगर ये सच है, यहाँ पहली बार आने से पहले में पूरा नैनिताल इस कहानी में महसूस कर चुका था, बस बचा था तो इन सब चीजों को देखना।
जब पहली बार यहाँ आना हुआ तब बहुत कम समय के लिए आये थे तो ज्यादा कुछ घूम नहीं पाया था, तब यहाँ से वापिस जाते समय मैंने खुद से एक वायदा किया था कि यहाँ एक बार फिर आऊँगा और कहानी में जो भी स्थान महसूस किए थे उन सब को घूम के जाऊँगा। आज वो दिन आ गया था, मैं अपनी यादों के झरोखे से वापिस आया, बाइक वहीं लगी रहने दी और हम 2 चल दिए पास की दुकान पर चाय पीने।
झील, बतख और मछलियाँ।
झील से बमुश्किल 20 मीटर की दूरी पर हम लोग हाथ में चाय लिए निःशब्द झील को निहार रहे थे। उस समय झील में पानी काफी ज्यादा था, मॉल रोड पर झील के एक तरफ की दीवार का कुछ हिस्सा पानी में दरक गयी थी। हम चाय पी ही रहे थे कि इतने में एक बंदे ने हमारे पास आकर पूछा रूम तो नहीं चाहिए? मैंने उसे थोड़ी देर रुकने का इशारा किया और चाय निपटाकर नेहा को वहीं रुकने का बोलकर में चल दिया होटल में रूम देखने।
वैसे मैं चाहता तो किसी ऑनलाइन एप्प से होटल की बुकिंग कर सकता था मगर इस तरह से मुझे यहाँ के तमाम होटलों के बारे में जानने और देखने का मौका नहीं मिलता। उस बंदे ने मुझे 2 3 होटल दिखवाये, एक होटल मुझे पसंद आया जिसमें 2 तरह के रूम थे, एक जिसका रेट ₹800 था वो थोड़ा अंदर की तरफ था, दूसरा ₹1000 का था जो कि पहले वाले से काफी बड़ा और साथ में इसकी बालकनी से पहाड़ों के नज़ारे भी दिख रहे थे। मैंने बिना एक भी पल गँवाए इस रूम को बुक करने का मन बना लिया, मगर फिर भी एक बार नेहा हो दिखवाना तो बनता था, नेहा ने भी इसी रूम को कन्फर्म करने का कहा। रूम में पहुँचकर सबसे पहले हाथ पैर धोए और 2 कप चाय का ऑर्डर करके बालकनी में बैठ कर स्वर्ग से दिखते पहाड़ों को निहारने लगे।
होटल की बालकनी से दिखता नैनीताल, इसके लिए तो कुछ भी कीमत ज्यादा नहीं थी।
चाय पीने के बाद एक घंटे सोने का मन हुआ क्यूंकि रात में नींद न क बराबर हुई थी और फिर आज दिन भर बाइक चलानी है तो थोड़ा सोना जरुरी है। एक घंटे बाद का अलार्म लगाया और कम्बल तान के सो गए। मेरी बैरी नींद अगले आधे घंटे में ही खुल गयी, कुछ देर बालकनी पर खड़े होकर पहाड़ों को निहारता रहा और फिर नहाने चल दिया। गरम पानी से नहा कर आनंद आ गया, नहाने के बाद नाश्ता आर्डर कर दिया और इतनी देर में नेहा भी तैयार हो गयी थी। नाश्ता निपटाया और रूम को लॉक करके चल दिए नैनीताल की सैर करने।
हमारा होटल नैनीताल में नैनी झील से बमुश्किल 200 300 मीटर की दूरी पर था, होटल के मैनेजर काफी मिलनसार व्यक्ति थे, मैंने उनसे आसपास की जगहों का थोड़ा सा आईडिया लिया और सबसे पहले हम चल दिए "हनुमान गढ़" मंदिर की तरफ और इस समय वक़्त था करीब सुबह के 09:30। मैं अब अपने उस कहानी वाले दौर को जी रहा था, इस जगह का नाम मुझे इस कहानी से ही मालूम चला था। हनुमान गढ़ मंदिर हमारे होटल से मात्र 1 किलोमीटर की दूरी पर था फिर भी हमें बाइक से वहाँ तक जाने में 15 मिनट लग गए थे और उसका कारण था वहाँ का मौसम और उमड़ घुमड़ करते बादल जो बाहें फैलाये सभी सैलानियों का स्वागत कर रहे थे।
हनुमानगढ़ के रास्ते में उमड़ घुमड़ करते बादल।
हनुमान गढ़ मंदिर की जानकारी।
हनुमान गढ़ समुद्र तल से करीब 6400 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित हनुमान जी का प्रसिद्ध मंदिर है, जिसकी स्थापना परम पूज्यनीय "नीम करौली" बाबा द्वारा सं 1950 में की थी। इस मंदिर में हनुमान जी अद्व्तीय प्रतिमा है जिसमें हनुमान जी अपना हृदय चीर के प्रभु श्रीराम और माता सीता के प्रति श्रद्धा प्रकट कर रहे हैं।
ये स्थान काफी साफ सुथरा और एक धार्मिक स्थल होने की वजह से यहाँ का माहौल काफी अच्छा था। तस्वीरें लेना पूर्णतः प्रतिबन्ध है तो मैंने कैमरा बन्द करके बैग में रख लिया। जूते उतारकर हम लोग मंदिर के अंदर चल दिए, मंदिर के मुख्य द्वार से अंदर होते ही सामने मंदिर का और नीम करौली बाबा के जीवन का पूरा इतिहास वर्णित था। उसको पढ़ने के बाद हम लोग मंदिर के मुख्य आकर्षण हनुमान जी के मंदिर के दर्शन को चल दिए।
इस मूर्ति को देखते रहने का मन करे ये उस तरह की थी, दर्शन पश्चात पुजारी जी ने प्रसाद रूप में चने दिए जिसे लेकर हम अन्य मंदिरों की तरफ़ चल दिए। मंदिर परिसर में देखने लायक साफ सफाई और शांति का माहौल था, मंदिर परिसर में एक हॉल भी है जहाँ किसी समय में बाबा गद्दी लगाकर भक्तों से मेल मिलाप करते होंगे, उस स्थान पर आज भी गद्दी रखी हुई है। इस हॉल में नैनीताल के कुछ लोग भजन कीर्तन आदि कर रहे थे, हम भी कुछ देर के लिए इस माहौल में शामिल हो गए। हारमोनियम पर एक बालिका थी और उसका साथ दे रहे ढोलक पर कुछ लोग, बाकी सभी लोग भजन गाने में व्यस्त थे, पूरे नैनीताल में इससे ज्यादा सुकून देने वाली और हो कोई जगह हो। कुछ देर यहाँ रुकने के बाद बाबा जी को प्रणाम करे चल दिए अन्य मंदिरों की तरफ, वहाँ भी हमें चने का प्रसाद मिला जिसकी खुशबु से कुछ बंदरों ने हमें गुट बनाकर घेर लिया और हमसे वो चने लेने के बाद ही हमें आगे बढ़ने दिया। नैनीताल आने वाला हर वो व्यक्ति जिसे सुकून वाले किसी स्थान में कुछ समय बिताना है उसके लिए इससे बेहतर जोई और स्थान नहीं हो सकता।
यहाँ के सारे मंदिरों के दर्शन के बाद हम लोग फिर से बाइक पर सवार होकर नैनीताल के मुख्य बाजार जो की मॉल रोड पर है उस तरफ चल दिए, वहाँ पहुँचकर टिफ़िन टॉप जाने का रास्ता पूछकर वहाँ जाने के हिसाब से आगे बढ़ दिए। आगे एक जगह ठीक ठाक सा रेस्टॉरेंट दिखा तो बाइक वहीँ साइड से लगा दी, खाने का समय हो रहा था और भूख भी ज़ोरों की लगी थी। मॉल रोड से यहाँ आते समय रास्ते में "स्नो व्यू पॉइंट" जाने वाला रोपवे का बोर्ड नेहा ने देखा था और उसके मन में वहाँ जाने की इच्छा थी, मेरा कोई निर्धारित प्लान तो था नहीं, अपना तो ये था जहाँ मन अरे वहाँ चल दो, खाना निपटने के बाद हम लोग टिफ़िन टॉप की जगह वापिस मॉल रोड पर आ गए और बाइक एक जगह लगा के चल दिए रोपवे के टिकट काउंटर की तरफ।
स्नो व्यू पॉइंट की तरफ जाती रोपवे का मनोरम दृश्य।
स्नो व्यू पॉइंट की समुद्र तल से ऊँचाई 2270 मीटर के आसपास है, ये वो स्थान है जहाँ से पूरे नैनीताल का नज़ारा बेहद ही खूबसूरत दिखाई देता है, और अगर मौसम साफ़ है तो यहाँ से आपको हिमालय दर्शन भी हो सकते हैं। हिमालय दर्शन कराने के लिए यहाँ के सबसे ऊँचे स्थान पर एक बड़ी से दूरबीन लगी हुई है जिससे मौसम साफ होने पर आप चौखम्बा, त्रिशूल आदि पर्वत श्रंखलाओं के दर्शन कर सकते हैं।
रोपवे का टिकट कुछ इस प्रकार है:
व्यस्क के लिए: ₹230
बच्चे के लिए: ₹150
ये टिकट एक घंटे के लिए मान्य होता है, यानि की जिस समय आप सुरक्षा जाँच के बाद रोपवे की ट्रॉली में बैठते हैं उसके एक घंटे तक के लिए ये टिकट मान्य होता है।
मैं इसके पहले कई जगह रोपवे का सफर कर चूका हूँ जैसे की मनसा देवी, चंडी देवी, मसूरी आदि तो मुझे इसका उतना रोमांच नहीं था मगर इस तरह की ऊँचाई वाले रोपवे का नेहा का ये पहला सफर था तो उसके चेहरे की मुस्कान देखने लायक थी, इस मुस्कान को देखकर रोपवे की टिकट का खर्चा वसूल हो गया था। ये जगह ठीक मसूरी के गन हिल पॉइंट जिसे लाल टिब्बा के नाम से भी जाना जाता है की तरह थी जहाँ ठीकठाक सा बाज़ार जिसमें खाने पीने, लकड़ी के सामन की दुकानें और बच्चों के लिए बहुत सारे खेल पॉइंट्स उपलब्ध थे। वहाँ एक दुकान जिसमें तमाम तरह का लकड़ी का सामान मिल रहा था, उस दुकान पर कुछ लकड़ी के विंड चाइम्स भी थे जो की वहाँ चल रही हवा में अलग अलग ध्वनियाँ निकाल रहे थे, काफी सुकून भरा था वहाँ का माहौल। हमने उस माहौल में कुछ समय बिताया और आसपास की कुछ तस्वीरें भी निकाल लीं।
वहाँ पास में एक स्थान पर लोग घुड़सवारी का आनंद भी ले रहे थे, वहाँ ज्यादा लोग नहीं थे तो वो स्थान मुझे सुकून से कुछ समय बिताने के लिए अच्छा लगा, यहाँ भी कुछ तस्वीरें निकालीं और उसके बाद हम वहाँ के सबसे ऊँचे स्थान पर चल दिए इस उम्मीद में की हिमालय के दर्शन हो जाएँ मगर निराशा हाथ लगी और उसका कारण था बादलों का होना। ऐसे स्थानों से हिमालय दर्शन का सबसे सही समय है सुबह या बरसात के समय जब मौसम एक दम साफ़ हो।
काश के हम यहीं रुक सकते।
खैर एक घण्टे की समय सीमा पूरी होने वाली थी तो वापिस रोपवे से नीचे पहुँच गए, बाइक उठाई और वहाँ मौजूद एक व्यक्ति से और हम कहाँ जा सकते है इसका आईडिया लिया तो अगला स्थान जो समझ आया वो था "खुर्पाताल" जो कि नैनीताल से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर है।
बाइक उठाई और नैनीताल के बाजार से होते हुए मस्जिद की तरफ बढ़ दिए, मस्जिद के बगल से एक रोड़ खुर्पाताल की तरफ जाती है उसे चल दिए। इस रोड़ पर थोड़ा आगे जाकर नैनीताल की हाइकोर्ट है, और थोड़ा आगे बढ़ने पर एक रास्ता पंगोट की तरफ जाता है। खैर हम अपने स्थान की तरफ बढ़ रहे थे, अचानक से एक स्थान दिखा जिसे देखकर ऐसा लग जैसे मैं पहले भी कभी यहाँ आया हूँ। नज़दीक पहुँच कर समझ आया की ये वही झरना है जहाँ मैं इससे पहले अपनी नैनीताल की पिछली यात्रा में भी आया था मगर तब इस जगह का नाम पता नहीं लगा था।
खुर्पाताल के रास्ते में पड़ने वाला वुडलैंड झरना।
खैर अभी हमें खुर्पाताल तक जाना था तो हम लोग इस झरने पर नहीं रुके, रास्ते में एक कोई और ताल भी पड़ा पर मैंने उसका नाम नहीं पढ़ पाया, वहाँ से थोड़ा आगे और चलने पर हम लोग खुर्पाताल पहुँच गए थे। ये एक शांत सा स्थान था जहाँ पर नैनी झील की तरह ही एक ताल था, बस ये उतनी बड़ा नहीं था। रास्ते में हमें जो झरना दिखा था उसका पानी यहाँ तक आता है। मैंने रोड़ किनारे बाइक लगा दी, मन था थोड़ी देर यहाँ सुकून से बैठने का, समय की भी कमी नहीं थी, तो मन की सुनी। हम लोग सुकून से इस स्थान की खूबसूरती को निहार रहे थे और तस्वीरें भी खींचते जा रहे थे, यहाँ पास ही एक मंदिर भी था जहाँ पर कुछ लोग थोड़ी देर रुक कर पूजापाठ करके आगे बढ़ रहे थे। हमने भी मंदिर के दर्शन किये और कुछ और समय बिताने के बाद वापिस नैनीताल की तरफ चल दिए।
खुर्पाताल का मनोरम दृश्य।
खुर्पाताल पर सुकून के कुछ पल बिताते हुए।
रास्ते में फिर से वो झरना पड़ा, इस बार यहाँ बाइक रोक ली, न जी न मुझे झरने पर नहीं जाना था, मेरा मन था यहाँ चाय पीने का। झरने के थी सामने 2 3 खाने पीने की दुकानें थीं, उनमें से एक पर बैठ कर चाय का आर्डर दे दिया, झरने में एंट्री की फीस थी ₹50, झरने पर काफी सारे सैलानी थे जो तरह तरह के पोज़ दे रहे थे या पानी में अठखेलियाँ कर रहे थे, मैंने नीचे से कुछ फोटोज क्लिक करे। चाय आ गयी थी वो निपटाई उसके बाद बढ़ चले अपने होटल की तरफ। इस बार हम इस मूड में थे की हमें सब कुछ नहीं देखना या घूमना, जहाँ मन होगा वहाँ चल देंगे, कोई भागमभाग नहीं, अब मन था होटल पहुँच के आधा घंटा आराम करने का और उसके बाद पैदल मॉल रोड़ घूमने और "नैना देवी मंदिर" की आरती में शामिल होने का। होटल पहुँच कर 2 चाय मँगवा ली और वहीँ बालकनी में बैठ कर बातें करने लगे।
बड़े शहरों के लोगों को कहाँ मिलते हैं ऐसे सुकून के पल, वहाँ तो हम लोग सिर्फ अपनी रोज़ की भागमभाग में लगे रहते हैं। चाय और बातों का दौर ख़त्म हुआ, हाथ पैर धोकर साफ़ कपड़े पहन लिए और ऐसा इसलिए करा क्यूंकि हमें मंदिर जाना था। इस बार हमने बाइक नहीं ली, पैदल ही चल दिए, सबसे पहले मॉल रोड पर नैनी झील के सौंदर्य दर्शन करे, झील में पानी काफी ज्यादा था, और मछलियाँ भी, लोग दाना डालते तो मछलिओं का समूह एक दम से उस स्थान पर आ जाता, गज़ब दृश्य था वो।
नैनी झील में मछलिओं को दाना देने पर हजारों की तादाद में मछलियाँ दिखने लगती हैं।
हल्का सा अँधेरा होने लगा था, हम लोग नैनी झील के नज़दीक चलते हुए बाज़ार की दुकानें देखते हुए नैना देवी मंदिर के नजदीक पहुँच गए थे, मेरा मन था यहाँ की आरती में शामिल होने का, और संयोग देखिए, जैसे ही हम लोग मंदिर प्रांगण में नैना देवी मंदिर के दर्शन को मंदिर के द्वार पर पहुँचे पुजारी ने हमें रोक लिया और कहा अब दर्शन आरती के बाद होंगे, मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। मंदिर के ठीक सामने 3 बड़े से घंटे लगे थे जिनमें 2 पर मंदिर के पुजारी मौजूद थे, एक का जिम्मा मैंने संभल लिया। आरती शुरू हुई और उसी के साथ हमने घंटे बजाने शुरू कर दिए, पूरा माहौल घंटी की ध्वनि से गूँज उठा, अगले 15 मिनट तक आरती चलती रही। हर की पौड़ी हरिद्वार, ऋषिकेश की आरती और उसके बाद ये आरती, अलग ही अनुभव है इनमें शामिल होने का।
नैना देवी मंदिर परिसर, दुल्हन की तरह सजा हुआ।
नैना देवी मंदिर परिसर में स्थित हनुमान मंदिर।
आरती संपन्न होने के बाद नैना देवी के दर्शन करने के पश्चात अन्य मंदिरों के दर्शन कर, झील के समीप जाकर खड़े होकर उस नज़ारे को निहारने लगे। झील में आसपस की जलती लाइट का प्रतिबिम्ब देखने लायक था, मैंने कुछ तस्वीरें निकलीं और एक टक ये सब देखता रहा।
नैनीताल झील में दिखता शहर का बेहद खूबसूरत प्रतिबिम्ब।
माहौल में ठीकठाक ठंडक हो चुकी थी और हम 2 लोगों को अब थकान भी काफी लगने लगी थी। मंदिर में माता से विदा ली, मॉल रोड़ पर पहुँच कर एक दुकान पर चाय और पकोड़े खाए फिर पैदल चल दिए अपने होटल की तरफ, रास्ते में पड़ने वाली दुकानों की सजावट देखते बन रही थी। नैनीताल में अब डोमिनोज़, पिज़्ज़ा हट वगैरा भी आ गये थे, मगर अपन को तो अभी भूख नहीं थी। होटल पहुँच कर मेन्यू देखा मगर खाना खाने का मन न के बराबर था तो कुछ मंगवाया नहीं।
बाहर गज़ब की हवा चल रही थी तो हमने बालकनी की खिड़की खोल दी और वही चुपचाप बैठकर इस माहौल में मगन होने लगे, बातचीत में अगले दिन कहाँ जाना है इसकी भी बात होने लगी। जैसा की मैंने आपको बताया की इस बार हम किसी निर्धारित प्लान को लेकर नहीं चल रहे थे तो कल का हमारा प्लान है "जागेश्वर" तक जाने का उसका बाद देखेंगे की कहाँ तक जाना है या कहाँ तक पहुँचते हैं। इस यात्रा पर यहीं विराम लगते हैं।
जागेश्वर की यात्रा शुरू करने से पहले बस यूँही कैमरा पर हाथ आजमाते हुए।
फिर मिलेंगे कहीं किसी रोज़ घूमते फिरते।
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