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जागेश्वर से अल्मोड़ा होते हुए हल्द्वानी वापसी।
वृद्ध जागेश्वर से बाइक सीधे डंडेश्वर महादेव मंदिर पर आकर रुकी, कुछ देर मंदिर प्रांगण में चहल कदमी के बाद वापिस अपने होमस्टे पहुँच गया, वहाँ पहुँचकर नेहा, जो की अभी भी सो रही थी उसे उठाकर वृद्ध जागेश्वर की तस्वीरें दिखायीं और एक ही साँस में पूरा घटनाक्रम सुना दिया। नेहा उठकर तैयार हुई और फिर हम चल दिए एक बार फिर जागेश्वर मंदिरों के दर्शन को, दर्शन के बाद मंदिर काम्प्लेक्स से बाहर आकर रात वाली जगह पर ही चाय नाश्ता निपटाया, नाश्ते में थे आलू के पराँठे और चने की सब्जी। नाश्ता निपटने के बाद सीधे पहुँच गए संग्रालय देखने, कल यहाँ आना नहीं हुआ था तो सोचा आज ये भी देख ही लें क्यूंकि आज हमारे पास करने को कुछ और नहीं था, यहाँ से आराम से हल्द्वानी निकलना था जो की जागेश्वर से 120 किलोमीटर की दूरी पर था और हमारे पास पूरा दिन था।
संग्रालय प्रवेश द्वार।
मैंने बहुत ज्यादा जगह के संग्रालय नहीं देखें हैं मगर जितने भी देखे हैं उनमें से ये सबसे ज्यादा अच्छा लगा। संग्रालय के गेट पर एक व्यक्ति जो की भारतीय पुरातत्व विभाग की तरफ से नियुक्त था वो एक रजिस्टर लेकर बैठा हुआ था, जिसमें हर एक व्यक्ति को कुछ जानकारी भरनी थी जैसे नाम, पता आदि,मैंने भी उसमे ये सारी जानकारी दर्ज की और संग्रालय के अंदर चल दिए। ये संग्रालय काफी व्यवस्थित था, हर चीज एक दम करीने से रखी हुई थी, बाहर जूता स्टैंड, वाटर कूलर, डस्टबिन आदि उपलब्ध थे। अंदर का नज़ारा किसी को भी अचंभित करने के लिए पर्याप्त था, इस पूरे संग्रालय में जागेश्वर और आसपास के एरिया में जो मूर्ति खुदाई में निकलीं हैं या फिर कुछ खंडित मूर्तियाँ जिन्हें मंदिर में नहीं रखा जा सकता वो थीं।
संग्रालय में घुसते से ही सामने एक हॉल नुमा कमरा था जिससे जुड़े हुए 3 बड़े हॉल थे और हर एक हॉल में काफी सारी मूर्तियाँ लकड़ी के स्टैंड पर रखी हुईं थीं, हर एक मूर्ति के आगे उस मूर्ति में कौन है उसका नाम और वो कब और कहाँ मिली थी ये वर्णित था। ये मंज़र आपको इतिहास के उस दौर में जाने पर मजबूर कर देगा जबकि की मूर्तियाँ थीं, मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था, हम लोग अचंभित होकर इन सभी मूर्तिओं को देखते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। हर एक हॉल में एक गार्ड भी मौजूद था जो हमारी हातिविधिओं पर निगाह रखे हुए था ताकि हमारी तरह का कोई भी सैलानी इन धरोहरों को किसी तरह का कोई नुकसान न पहुँचा सके, ये सब देखकर मुझे ग्वालियर के किले पर स्थित संग्रालय की याद आ गयी, वहाँ पर भी इस तरह की मूर्तिओं का काफी अच्छा संग्रह है। संग्रालय में तस्वीरें खींचना मन था तो कैमरा का कोई काम ही नहीं था। संग्रालय की तस्वीरें देखें के लिए यहाँ क्लिक करें।
सारे हॉल में से मूर्तियाँ देखते हुए हम लोग अंतिम हॉल में पहुँच गए जहाँ पर जागेश्वर के राजा जिनका नाम "पौन राजा" था उनकी आदम कद की धातु की मूर्ति रखी हुई थी जो की खण्डित तो थी मगर उसकी कारीगरी देखने लायक थी। इन सभी मूर्तिओं के दीदार के बाद हम लोग वापिस अपने गेस्ट हाउस पहुँच गए और सामान समेटना शुरू किया और अगले आधे घंटे में हम लोग गेस्ट हाउस खाली करके महादेव से विदाई लेकर वापिस हल्द्वानी जाने के लिए तैयार थे। गेस्ट हाउस का किराया आदि दिया और सारा सामान बाइक पर रखने के बाद एक बार वहीं से महादेव को दंडवत प्रणाम किया और किसी भूल चूक के लिए माफ़ी माँगी और आगे की यात्रा को सुगम व सुरक्षित बनाने की अर्जी लगाकर बाइक चालू कर दी और बुझे से मन के साथ हम लोग यहाँ से वापिस चल दिए।
थोड़ी देर में हम लोग एक बार फिर से डंडेश्वर महादेव मंदिर के सामने खड़े थे, नेहा ने अंदर चलकर कुछ फोटो निकलवाने की इच्छा जाहिर की और अगले ही पल हम लोग मंदिर प्रांगण में एक बार फिर से खड़े थे और कुछ तस्वीरें निकालने के बाद हमने यहाँ भी महादेव से आज्ञा ली और अपने दिल का एक हिस्सा यहाँ की हसीं वादिओं में छोड़कर वापिस हल्द्वानी की तरफ चल दिए।
डंडेश्वर महादेश मंदिर के सामने दिखता एक दम साफ़ आसमान।
घड़ी में सुबह के 10 बजे थे, इसका मतलब ये था की हमारे पास पूरा दिन थे और हमें मात्र 120 किलोमीटर की दूरी तय करनी थी तो हमने ये तय किया की आराम से हर जगह रुकते हुए इस दूरी को तय करेंगे, एक बार फिर से नेहा के हाथ में मोबाइल था और उसका कैमरा चालू था और मैं रोड़ पर अपनी नज़रे गड़ाए बाइक चला रहा था। यहाँ से चलकर सबसे पहला स्टॉप लिया दाना गोलू देवत मंदिर पर, वहाँ थोड़ी देर रूककर वापसी की आज्ञा ली और चल दिए आगे। यहाँ से आगे चलकर अगला स्टॉप लिया "चितई गोलू" देवता मंदिर पर, जहाँ जाते समय हम लोग रुकना भूल गए थे।
अर्जियों और घण्टियों का संसार, चितई गोलू देवता मंदिर।
चितई गोलू देवता मंदिर का इतिहास और मान्यताएं: जानकारी स्त्रोत
जिला मुख्यालय अल्मोड़ा से आठ किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ हाईवे पर न्याय के देवता कहे जाने वाले गोलू देवता का मंदिर स्थित है, इसे चितई ग्वेल भी कहा जाता है | सड़क से चंद कदमों की दूरी पर ही एक ऊंचे तप्पड़ में गोलू देवता का भव्य मंदिर बना हुआ है। मंदिर के अन्दर घोड़े में सवार और धनुष बाण लिए गोलू देवता की प्रतिमा है।
उत्तराखंड के देव-दरबार महज देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना, वरदान के लिए ही नहीं अपितु न्याय के लिए भी जाने जाते हैं | यह मंदिर कुमाऊं क्षेत्र के पौराणिक भगवान और शिव के अवतार गोलू देवता को समिर्पत है । ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण चंद वंश के एक सेनापति ने 12वीं शताब्दी में करवाया था।
एक अन्य कहानी के मुताबिक गोलू देवता चंद राजा, बाज बहादुर ( 1638-1678 ) की सेना के एक जनरल थे और किसी युद्ध में वीरता प्रदर्शित करते हुए उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके सम्मान में ही अल्मोड़ा में चितई मंदिर की स्थापना की गई।पहाड़ी पर बसा यह मंदिर चीड़ और मिमोसा के घने जंगलों से घिरा हुआ है। हर साल भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं।
इस मंदिर में आपको कुछ ऐसा देखने को मिलेगा जो अन्य किसी मंदिर में शायद ही आपको देखने को मिले और वो है यहाँ मंदिर के हर एक स्थान लगी हुई लोगों की अर्जियाँ जो की हज़ारों की संख्या में थीं इसके अलावा इतनी ही संख्या में हर तरफ दिखने वाली घंटियाँ। अब सबसे पहले मन में ये सवाल आता है की आखिर ये इतनी सारी अर्जियाँ और इतनी सारी घंटियाँ यहाँ आई कहाँ से!
भक्तों के द्वारा लगाई गयी हज़ारों अर्जियाँ।
तो इसका जवाब है - ये सारी अर्जियाँ यहाँ पर भक्तगण लगाते हैं, जिसकी जो मनोकामना हो या किसी का कोई रुका हुआ काम हो, तो लोग उसके लिए यहाँ मंदिर पर अपनी अर्जी लगाकर जाते हैं, सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात ये थी की कुछ लोग जिनकी समस्यायेँ कोर्ट कचहरी से सम्बंधित होती हैं वो लोग बाक़ायदा अपनी अर्जी स्टाम्प पेपर पर लगाते हैं, इसके अलावा एक भक्त ने बाक़ायदा अपनी अर्जी एक बैनर पर लगा रखी थी। जब किसी भक्त की मनोकामना पूरी होती है तो वो इस मंदिर पर अपने सामर्थ अनुसार एक घण्टी यहाँ चढ़ा देता है और इसी क्रम में ये पूरा मंदिर अर्जियों और घण्टियों से भरा हुआ है।
मंदिर में भीड़ को सँभालने के लिए काफी अच्छे इंतेज़ाम थे, मगर उस समय कुछ 3 4 लोग ही मंदिर परिसर में मौजूद थे। मंदिर के पुजारी जी हर एक व्यक्ति की पूजा पाठ बड़े आराम से करवा रहे थे, हमें भी कोई जल्दी नहीं थी तो थोड़ी देर आराम से वहीँ टहलते हुए अपनी बारी आने का इंतजार करते रहे। अपनी बारी आने पर पुजारी जी ने विधि विधान से पूजा कराई और हमने अपनी श्रद्धा अनुसार दान दिया और मंदिर से बाहर मंदिर परिसर में आ गए, यहाँ पर कुछ तस्वीरें निकालीं और वापिस नीचे बाइक की तरफ चल दिए।
यहाँ से बाइक उठायी और आगे चल दिए और अगला स्टॉप अल्मोड़ा के बाज़ार में चाय पीने के लिए लिया, सुबह के पराँठे अभी भी ऊर्जा दे रहे थे तो खाना कहीं आगे खाने का मन बनाकर चाय पीकर फिर से आगे बढ़ दिए। थोड़ा और आगे चलने पर एक जगह एक साइन बोर्ड देखकर बाइक साइड से लगा दी, साइन बोर्ड पर लिखा था "ढोकाने झरना" दूरी 2 किलोमीटर। सोचा चलकर देखा जाए आखिर क्या है यहाँ पर, मोबाइल निकला तो देखा जिओ का नेटवर्क एक दम सही से आ रहा था, गूगल पर जाकर इस झरने कि तस्वीरें देखीं तो कुछ सही सी जगह लगी, बोर्ड पर देखा तो मालूम पड़ा ये रास्ता मुक्तेश्वर की तरफ भी जाता है, बाइक घुमाई और उस तरफ चल दिए।
ढोकाने झरने की तरफ जाता हुआ रास्ता।
मुख्य सड़क से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ये झरना, थोड़ा आगे बढ़ते ही एक स्वास्थ्य केंद्र पड़ा जो यहाँ के गाँव वासिओं की सुविधा के लिए था, थोड़ा और आगे बढ़ने पर हमें काफी नीचे की तरफ एक झरने के दर्शन होने लगे, जहाँ काफी सारे लोग नहा रहे थे। झरने तक पहुँचने के लिए हमको करीब 300 400 मीटर पैदल चलना पड़ता और बाइक को ऊपर ही छोड़ना पड़ता। अब समस्या ये थी की बाइक पर सारा सामान था और ऐसे कहीं भी सामान सहित बाइक छोड़ना ठीक नहीं लगा तो हमने वहीं ऊपर से ही झरने की कुछ तस्वीरें निकलीं और वापिस मुख्य सड़क की तरफ चल दिए।
ढोकाने झरना कुछ ऐसा दिखता है।
यहाँ से थोड़ा और आगे बढ़ने पर एक बार फिर से हम लोग उस चौड़ी सी सड़क पर आ गए थे, बाइक की गति एक दम से बढ़ने लगी पर मैंने गति पर नियंत्रण किया क्यूंकि नेहा का मन यहाँ कुछ फोटो और वीडियो बनाने का था। एक जगह पर बाइक सड़क के किनारे लगा दी और कुछ तस्वीरें निकालीं, सड़क की, बगल से बहती "कोशी नदी" की, कुछ अपनी, कुछ बाइक की, बाइक से आने का यही फायदा है, अपनी मर्जी के मालिक होते हैं आप।
कोशी नदी का विहँगम दृश्य।
थोड़ी देर बाद यहाँ से आगे चल दिए और रोड़ पर उलटी तरफ एक ढाबे पर खाना खाने के लिए बाइक लगा दी। खाने में उसके पास काफी कुछ था,हमने आर्डर दिया कड़ी पकोड़ा, भिंडी मसाला और तवा रोटी का, थोड़ी देर में खाना आ गया, कड़ी के तो कहने ही क्या अमृत सामान स्वाद था कड़ी का, पेट भर गया था मगर मन था की मान ही नहीं रहा था। खाना निपटने के बाद एक एक कप चाय मगाईं और चाय निपटाकर फिर से वापसी के लिए चल दिए।
इसके बाद अगला स्टॉप लिया कैंची आश्रम पर, यहाँ अंदर तो जाना नहीं हुआ बस बाहर से ही हाथ जोड़ कर वापसी की आज्ञा ली, कुछ तस्वीरें निकालीं और आगे बढ़ दिए। यहाँ से वापसी के 2 रास्ते थे - एक भीमताल होकर और दूसरा नैनीताल होकर, आते समय नैनीताल होकर ही आये थे तो अब भीमताल की तरफ से वापसी का मन था, गाड़ी उसी तरफ मोड़ दी, शहर के अंदर वाली सड़क पर ठीकठाक भीड़ थी।
वापसी में कैंची आश्रम पर।
भीमताल का मनोरम दृश्य। ये इस एरिया का सबसे बड़ा ताल है।
भीमताल वाली सड़क की स्थित अच्छी नहीं है तो अब यहाँ हम बहुत आराम आराम से आगे बढ़ रहे थे, थोड़ा और आगे चलकर "भीमताल" आ गया। शाम के करीब 04:00 बजे थे, यानि अभी हमारे पास 2 3 घंटे और थे, तो थोड़ी देर यहाँ रुकना बनता था, यहाँ भी बाइक किनारे लगायी और कुछ नज़ारे तस्वीरों में कैद कर लिए और कुछ देर वहीँ बैठे रहे। यहाँ से चलकर अगला पड़ाव डाला हल्द्वानी से कुछ 4 किलोमीटर की दूरी पर सड़क के किनारे की एक चाय की दुकान पर जहाँ चाय और पकोड़े का आनंद लिया। अभी हमारे पास 1 2 घंटे का समय और था तो सोचा हल्द्वानी में कहीं लोकल कुछ घूम लेंगे, इससे सम्बंधित जानकारी चाय वाले से तो उन्होंने बताया की हल्द्वानी में पहुँच कर किसी से "बैराज" जाने का रास्ता पूँछ लेना, वहाँ आप आराम से आधा या एक घण्टा बिता सकते हैं, जानकारी पाने के बाद आगे बढ़ दिए।
गौला बैराज पर निकाली गयी इस यात्रा की आखिरी तस्वीर।
पिछली नैनीताल यात्रा की तस्वीर। वही स्थान और वही मैं।
बैराज को "गौला बैराज" के नाम से भी जाना जाता है, ये काठगोदाम रेलवे स्टेशन के ठीक सामने गौला नदी पर बना हुआ एक डैम है जिसका पानी वहाँ के लोग खेती बाड़ी में उपयोग करते हैं। काठगोदाम पहुँच कर हमने एक व्यक्ति से बैराज का रास्ता पूछा और उसके बताये रास्ते पर चल दिए, वो रास्ता डैम की तरफ जा रहा था, डैम तक जाने में मुझे कोई खास दिलचस्पी नहीं थी तो मैंने बाइक वापिस घुमाई और वहीँ सामने नदी पर जो पुल बना हुआ है वहाँ तक जाने का मन बनाया और उसी तरफ बाइक बढ़ा दी। ये जगह कुछ पहचानी लग रही थी, दिमाग पर काफी जोर डालने के बावजूद मुझे याद नहीं आया की इस जगह से हमारा क्या कनेक्शन है, बाद में जब घर पर इस यात्रा और पिछली नैनीताल की यात्रा की तस्वीरें देखीं तो याद आया की पिछली यात्रा में भी हम यहाँ रुके थे। दोनों तस्वीरें देखकर ऐसा लगा जैसे हम कोई टाइम लैप्स वीडियो देख रहें हों, ऐसा लगा जैसे ये स्थान हमें अपने पास फिर से बुला रहा था। यहाँ की भी कुछ तस्वीरें निकालीं और कैमरा को बैग में रख लिया, कैमरा की सेवाएं यहीं तक थीं।
यहाँ से हमें वापिस हल्द्वानी पहुँचकर आनन्द भाई को बाइक वापिस देनी थी, वापिस के प्लान में थोड़ा बदलाव था, अब हम अगले दिन सुबह वापिस न जा कर अभी रात की ही किसी बस से नॉएडा वापसी करेंगे ताकि अगला पूरा दिन आराम कर सकें। यहाँ से सीधे बस स्टैंड पहुँच कर अगले दिन के ट्रैन के टिकट कैंसिल करे और रात 9 बजे वाली बस के 2 टिकट बुक करवा के आनंद भाई को फोन लगाया और पुछा बाइक वापिस करने कहाँ आ जाएं, फोन उनकी पत्नी ने उठाया और उनसे बात करके हम लोग उनके घर की तरफ चल दिए। आनन्द भाई और उनकी पत्नी दोनों ही काफी मिलनसार किस्म के लोग हैं, उनकी पत्नी के आग्रह पर हम लोग उनके घर तक गए, वहाँ बैठकर काफी सारी बातें करीं, कुछ अपनी कही कुछ उनकी सुनी, और हाँ मैंने उन्हें अपने शहर ग्वालियर के बारे में भी बताया। आधा घण्टे वहाँ बैठने के बाद हम लोग उन लोगों को अलविदा कहकर मुख्य सड़क पर आ गए, यहाँ से हमने बस स्टैंड के लिए शेयरिंग ऑटो लिया और बस स्टैंड से पैदल अपने पुराने ठिकाने भरद्वाज वैष्णव भोजनालय जिसकी खोज हमने अपनी पिछली रानीखेत की यात्रा में की थी पर खाना खाने चल दिए, ये शहर कुछ अपना सा लग रहा था, अब में यहाँ की काफी गलियों से परिचित हो गया था। खाना खाकर वापिस बस स्टैंड आकर अपनी बस के लगने का इंतज़ार करने लगे।
रास्ते के कुछ हसीन पल।
भीमताल दर्शन।
बस स्टैंड पर बैठे हुए मेरे मन में ये लाइन्स लूप में गूँज रही थी:
नोट: इस ब्लॉग को लिखते समय में तस्वीरों का चयन नहीं कर पा रहा था और उसका कारण था तस्वीरों का सँख्या में बहुत ज्यादा होना और सभी तस्वीरें बेहद खूबसूरत थीं। ब्लॉग के अलावा जो तस्वीरें हैं वो आप मेरे फेसबुक पेज पर यहाँ देख सकते हैं।
3 दिन की इस यात्रा के दौरान हुए कुल खर्चे का विवरण:
आइटम | खर्चा |
ऑटो (नॉएडा से कश्मीरी गेट आना जाना) | ₹ 500 |
बस (दिल्ली से हल्द्वानी AC) | ₹ 1100 |
बस (हल्द्वानी से दिल्ली) | ₹ 700 |
बाइक किराया (900 प्रतिदिन) | ₹ 2700 |
सैडल बैग | ₹ 200 |
पेट्रोल | ₹ 1000 |
नैनीताल रूम | ₹ 1000 |
जागेश्वर गेस्ट हाउस | ₹ 500 |
पूजा पाठ | ₹ 300 |
नैनीताल रोपवे | ₹ 500 |
खाना पीना | ₹ 1000 |
आनन्द भाई से इन नंबर्स पर संपर्क करें:
8439353324, 9997404270
फिर मिलेंगे कहीं किसी रोज़ घूमते फिरते।
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