किन्ही कारणों से अभी ये ब्लॉग इंग्लिश भाषा में उपलब्ध नहीं है। बहुत जल्द इंग्लिश भाषा में भी उपलब्ध कराने का प्रयास करूँगा।
For some reason this blog is not available in English. I will try to make it available in English soon.
जैसा की आप सबको पता है मैं मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर में पला बढ़ा हूँ, मेरा मानना है की हर अच्छे काम की शुरुआत अपने घर से ही करनी चाहिए, मैंने घुमक्कड़ी की शुरुआत भी अपने शहर और अपने प्रदेश से ही की थी। अभी कुछ सालों से अपने प्रदेश में नहीं हूँ मगर मन कहीं न कहीं वहीँ रहता है।
दीपावली पर घर जाते समय रास्ते में जब ट्रैन में था तब एक पुराने स्कुल के दोस्त का दीपावली की शुभकामनायों का मैसेज आया, नीचे नाम भी लिखा था, मैसेज पढ़कर मुझे ध्यान आया की इस बन्दे की शादी अगले महीने है और ये बात मुझे कहीं और से मालूम चली है, मैंने तुरंत उस मैसेज के उत्तर में अपने दिल की पूरी भड़ास निकाल दी। मगर जो बहुत पुराने दोस्त होते हैं उनसे नाराज़गी ज्यादा देर नहीं रहती, उत्तर आया की जो भी गाली देनी है वो शादी का कार्ड देने घर आऊँगा तब दे देना, जल्दी से ग्वालियर आजा।
दीपावली पर वो घर आया, सारे गीले शिकवे दूर किए गए और ये तय हुआ की मैं उसकी बारात में भोपाल आ रहा हूँ, इस तरह से इस यात्रा पर जाने का ताना बाना बुना गया।
दीपावली की छुट्टी ख़त्म होने के बाद जैसे ही मैं वापिस नॉएडा आया मैंने सबसे पहले अपने एक और स्कुल के दोस्त विशाल को फोन लगाया जो की भोपाल में ही है और उससे बात करने के बाद मैंने दिल्ली से भोपाल और वहाँ से वापसी के टिकट कराए, जाने का तमिलनाडु एक्सप्रेस में और वापसी का दुरंतो में। मैं भोपाल इसके पहले भी 2 बार गया हूँ मगर कभी घूमने का मौका नहीं मिल पाया, इस बार मेरे पास वो मौका था, शादी रविवार रात को थी और में शनिवार की सुबह वहाँ पहुँच जाऊँगा, 2 दिन विशाल के यहाँ रुकना होगा और इन दो दिनों में आराम से विशाल की बाइक से लोकल भोपाल घूम लूँगा।
30 नवम्बर की रात में भोपाल वाली ट्रैन पकड़ी और अगले दिन सुबह करीब 8 बजे भोपाल पहुँच गया, विशाल ने मुझे स्टेशन से लिया और घर पहुँच कर शुरू हुआ पंचायत का दौर जो ख़त्म हुआ 10 बजे के करीब, 10 बजे विशाल अपने ऑफिस निकल गया और मैं तैयार हो गया आज की यात्रा पर जाने के लिए। आज मुझे सबसे पहले भीमबैठका नाम के स्थान पर जाना है और वहाँ से भोजपुर मंदिर उसके बाद देखा जाएगा कितना समय बचता है उस हिसाब से।
सबसे पहले भोपाल शहर का एक काम और था वो निपटाया और फिर नाश्ता करके चल दिए भीमबैठका की तरफ विशाल के साले साहब के साथ जिन्हें इस शहर का चप्पा चप्पा पता था और हमारे पास वाहन था विशाल भाई की बुलेट जिसमें मैंने पहले से पेट्रोल डलवा लिए था वो अलग बात है सही अंदाजा न होने की वजह से वापसी में पेट्रोल ख़त्म भी हो गया था। पुराने भोपाल से होते हुए हम लोग नए भोपाल की तरफ बढ़ने लगे, और वहाँ से हमने होशंगाबाद रोड़ पकड़ लिया, इस रोड़ के चौड़ीकरण का काम ज़ोरों से चल रहा था जिसके चलते रोड़ की हालत थोड़ी ख़राब थी तो हम आराम आराम से आगे बढ़ रहे थे।
अगले एक घण्टे के सफर के बाद हम हाईवे से जो रोड़ भीमबैठका के लिए मुड़ता है उस पर पहुँच गए थे, इस रोड पर मुड़ते से ही रेलवे का फाटक है जो की भोपाल होशंगाबाद रेलवे लाइन पर है, फाटक खुला मिल गया था तो हम यहाँ से सीधे भीमबैठका की तरफ बढ़ दिए। ये एक सिंगल मगर ठीकठाक रोड़ थी जिस पर थोड़ा आगे बढ़ने पर हम लोगों को रोड़ के दोनों तरफ पत्थर की शिलायें दिखने लगीं थी जिनको देखकर मुझे ग्वालियर के पास स्थित भदावना के झरने वाले स्थान की याद आने लगी थी। इन पत्थर की शिलाओं पर भी पानी के निशान थे जिन्हें देखकर ये समझ आ रहा था की बरसात के समय इस पूरे इलाके में पत्थरों पर से होते हुए पानी की धाराएँ बहने लगती होंगी और तब यहाँ की खूबसूरती देखने लायाक होती होगी, खैर अभी भी खूबसूरती में कोई कमी नहीं थी।
भीमबैठका के बारे में: साभार विकिपीडिया
भीमबेटका (भीमबैठका) भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के रायसेन जिले में स्थित एक पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल है। यह आदि-मानव द्वारा बनाये गए शैलचित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है। इन चित्रों को पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल के समय का माना जाता है। ये चित्र भारतीय उपमहाद्वीप में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं। यह स्थल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से ४५ किमी दक्षिणपूर्व में स्थित है। इनकी खोज वर्ष १९५७-१९५८ में डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी।
भीमबेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त १९९० में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया। इसके बाद जुलाई २००३ में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। यहाँ पर अन्य पुरावशेष भी मिले हैं जिनमें प्राचीन किले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष सम्मिलित हैं।
ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के चरित्र भीम से संबन्धित है एवं इसी से इसका नाम भीमबैठका (कालांतर में भीमबेटका) पड़ा। ये गुफाएँ मध्य भारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विन्ध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर हैं। इसके दक्षिण में सतपुड़ा की पहाड़ियाँ आरम्भ हो जाती हैं।
चूँकि यूनेस्को ने इसे "वर्ल्ड हेरिटेज साइट" का दर्जा दिया हुआ है इसलिए यहाँ की सुरक्षा में काफी सारे गार्ड लगे हुए थे जो की प्रत्येक पर्यटक को वहाँ की जानकरी दे रहे थे और साथ ही ये भी ध्यान रखे हुए थे की कोई भी व्यक्ति इस विश्व धरोहर को नुक़सान न पहुँचाए।
यहाँ पर शैलचित्रों और शैलाश्रयों को देखकर ऐसा लग रहा था की हम एक अलग ही दुनिया में हैं जहाँ के रहवासिओं के लिए ये सारे पत्थर बड़ा सा कैनवास रहे होंगे और उन्होंने अपने हिसाब से इन कैनवास पर अपने मन की तस्वीरें उकेर दीं, और इन्हें बनाते समय न जाने कौन से रंग का प्रयोग किया था जो हज़ारों वर्षों से जस का तस है, अध्भुत कारीगरी का नमूना हैं यहाँ के शैलचित्र और शैलाश्रय।
कब जाएं:
अत्यधिक गर्मिओं के मौसम को छोड़कर आप यहाँ किसी भी मौसम में जा सकते हैं।
कैसे जाएं:
भोपाल शहर से कुछ 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है भीमबैठका, यहाँ जाने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन भोपाल जंक्शन है और हवाई अड्डा भी भोपाल ही है। वैसे तो भोपाल शहर से यहाँ के लिए बस आदि उपलब्ध है मगर अपने निजी साधन से यहाँ जाना सबसे उपयुक्त है।
थोड़ा आगे बढ़ने पर एक चेकपोस्ट आया जहाँ से हमें अंदर जाने के लिए एक रसीड़ कटवानी थी जो की प्रत्येक बाइक वाले को लेनी होती है और उस समय इसका मूल्य 100 था, रसीद कटवाने के बाद हम लोग आगे बढ़ दिए। मन में एक प्रश्न था की इतनी महंगी एंट्री क्यूँ ली जा रही है? अंदर पार्किंग स्थान पर पहुँचे तो वहाँ के वाशरूम वगैरा देखकर लगा की एंट्री सही ली गयी है, वाशरूम एक दम साफ सुथरा था और मेरा मानना ये भी है की अगर ऐसी जगहों पर एंट्री न हो तो अनावश्यक भीड़ होती है और गंदगी और असुरक्षा का माहौल बढ़ता है एंट्री होने पर वही लोग आते हैं जिन्हें वाकई वहाँ घूमना है।
बाइक पार्किंग में लगाने के बाद हम भीमबैठका की प्रसिद्ध गुफाओं की तरफ बढ़ दिए, यहाँ के एंट्री गेट पर बाँस की बनी छोटी छोटी झोपड़ियाँ की तरह दिखने वाले बैठने के स्थान थे जिसके पास में कूड़ादान भी लगे हुए थे और सबसे अच्छी बात ये की ये एक दम साफ सुथरे थे, आप चाहें तो अपने साथ लाया हुआ खाना यहाँ बैठकर आराम से खा सकते हैं।
भीमबैठका, यहाँ हर पत्थर अपनी एक अलग कहानी कहता है।
भीमबैठका की तस्वीरों के द्वारा जानकारी।
भीमबैठका की तस्वीरों के द्वारा जानकारी।
हमने एक तरफ से शुरुआत की और आगे बढ़ने लगे, हमारी पूरी कोशिश थी की कोई भी शैलचित्र हमारी निगाह से बच न पाए, हर जगह दिशा सूचक और मैप लगे हुए ताकि पर्यटकों को किसी तरह की परेशानी न हो। हम इन सभी शैलचित्रों को आश्चर्य से देखते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे, कहीं कहीं तो पत्थरों को ही इस ढंग से रखा गया था की उनसे अलग अलग आकृतियाँ बन रहीं थी जो की मनमोहक थीं।
पत्थरों पर उकेरे गए अनेकों शैलचित्र।
आदि मानव से मानव तक का सफर।
कुछ शैलचित्रों में इंसानों का पूरा समूह कहीं जाता हुआ दिखाया गया था, कहीं इंसानों को पत्थरों के हथियारों से जानवरों से लड़ते हुए दिखाया गया था। हर गुफा के अंदर एक अलग तरीके का शैलचित्र देखने को मिल रहा था जो की अपने आप में एक आश्चर्य का विषय था, आश्चर्यों की इस दुनिया में हम आश्चर्यों को देखते हुए अगले आश्चर्य की तरफ बढ़ रहे थे, यहाँ हर पत्थर अपनी एक अलग कहानी कहता है।
पत्थरों पर उकेरे गए अनेकों शैलचित्र।
पत्थरों पर उकेरे गए अनेकों शैलचित्र।
पत्थरों पर अलग अलग तरह की आकृतियाँ।
पत्थरों पर अलग अलग तरह की आकृतियाँ।
पत्थरों पर अलग अलग तरह की आकृतियाँ।
पत्थरों से बनाई गयी एक कलाकृति जो कछुए की तरह दिखती है।
पत्थरों पर उकेरे गए अनेकों शैलचित्र।
सारी गुफाओं को देखने के बाद हम फिर से वापिस उसी स्थान पर आ गए जहाँ से हमने शुरू किया था। यहाँ आकर कुछ तस्वीरें निकलीं और फिर बाहर की तरफ चल दिए। बाहर जाकर मेरे साथ वाले भाई ने बताया की यहाँ समीप में करीब 300 400 मीटर की दूरी पर एक वैष्णो देवी का मंदिर हैं जिसके बारे में ऐसी मान्यता है की ये मंदिर भी भीम के समय का ही है, हमें वहाँ चलना चाहिए, मैंने उसकी बात से सहमति जताई और हम लोग उसी तरफ चल दिए।
ये मंदिर पहाड़ों के बीचोंबीच थोड़ी से ऊंचाई पर स्थित है, जहाँ से सामने की पूरी घाटी नज़र आती है। मंदिर के बाहर साइड से बाइक पार्क की और जूते उतार कर हाथ पैर धोकर मंदिर के अंदर चल दिए, मंदिर के बाहर लिखा था की मंदिर के अंदर तस्वीर लेना मना था तो मैंने कैमरा अंदर रख लिया।
भीमबैठका स्थित वैष्णो देवी मंदिर।
मंदिर का भवन पहाड़ों के बीच एक गुफा की तरह दिखने वाली जगह में था, गुफा को देखकर कोई भी व्यक्ति इस बात का अंदाजा लगा सकता है की ये मंदिर कितना पुराना है। पुजारी जी ने इस मंदिर के इतिहास के बारे में बताया की कैसे भीम ने इस मंदिर को बनाया और वो लोग यहाँ पूजा किया करते थे, ये सारी बातें जानने के बाद पुजारी जी ने हमें प्रसाद दिया और मैंने कुछ दान दानपात्र में डाला और फिर मंदिर का अवलोकन करते हुए बाहर चल दिए।
बाहर जाकर कुछ देर यूँही बैठे आसपास निगाहें दौड़ते रहे की आखिर कितना कुछ है इस भारत भूमि में देखने और महसूस करने के लिए, शायद ये जीवन कम पड़ जाये ये सब देखने के लिए। थोड़ी देर यूँही बैठे रहने के बाद हम लोगों ने जूते पहन लिए और चल दिए अपने अगले पड़ाव भोजपुर मंदिर की तरफ।
भीमबैठका वीडियो दर्शन
इस यात्रा की अन्य तस्वीरें यहाँ उपलब्ध हैं।
इस यात्रा का अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
फिर मिलेंगे कहीं किसी रोज़ घूमते फिरते।
#MP_ka_blogger
#floatingshoes
Location: Morey Plains to Leh
Published On: 24-Nov-2019
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Published On: 09-Nov-2019
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Location: Manali, Himachal Pradesh, India
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Location: Ladakh
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Published On: 19-Apr-2019
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Published On: 29-Mar-2019
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Published On: 03-Mar-2019
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Published On: 28-Feb-2019
Location: Kalka, Himachal Pradesh, India
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Location: Ratangarh, Madhya Pradesh, India
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Published On: 27-Jan-2019
Location: Shri Mata Vaishno Devi Katra, Katra, Jammu and Kashmir
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Location: Kanatal, Kaudia Range, Uttarakhand, India
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Location: Chopta, Uttarakhand, India
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Published On: 21-Jan-2018
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