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For some reason this blog is not available in English. I will try to make it available in English soon.
अगर आप वैष्णो देवी जाने का मन बना रहे हैं तो मेरा पिछले ब्लॉग जरूर पढ़ें जिसमें मैंने वहाँ जाने से सम्बंधित सारी जानकारी दे रखी है। इसे पढ़कर आपको अपनी यात्रा की तयारी में काफी मदद मिलेगी, ब्लॉग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
वैष्णो देवी मंदिर शक्ति को समर्पित एक पवित्रतम हिंदू मंदिर है, जो भारत के जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी की पहाड़ी पर स्थित है। हिंदू धर्म में वैष्णो देवी, जो माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं, देवी मां का अवतार हैं।
मदिर, जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू जिले में कटरा नगर के समीप अवस्थित है। यह उत्तरी भारत में सबसे पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है। मंदिर, 5,200 फ़ीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है। हर साल लाखों तीर्थयात्री मंदिर का दर्शन करते हैं और यह भारत में तिरूमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थ-स्थल है। इस मंदिर की देख-रेख श्री माता वैष्णो देवी तीर्थ मंडल द्वारा की जाती है। तीर्थ-यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए उधमपुर से कटरा तक एक रेल संपर्क बनाया गया है। (विकिपीडिया)
इस बार अपने जन्म दिवस पर वैष्णो देवी जाने का प्लान बनाया था, और माता की कृपा से ट्रैन में कन्फर्म टिकट भी मिल गए थे। इस सफर की तैयारी के नाम पर मैंने ऑनलाइन यात्रा पर्ची पहले से ले ली थी। चलिए यात्रा की शुरुआत नयी दिल्ली स्टेशन प्लेटफार्म न. 5 पर खड़ी उत्तर प्रदेश संपर्क क्रांति से करते हैं जो की रात 08:50 पर दिल्ली से निकल चुकी थी और हम उसमें सवार थे। सुबह जब आँख खुली तो हम लोग जम्मू में प्रवेश कर चुके थे और हमें पहाड़ो के इस तरह के दर्शन होने लगे थे।
इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य था वैष्णो देवी के दर्शन करना, मगर इसके साथ पहाड़ो के इस तरह के दर्शन सोने पे सुहागा वाले मुहावरे को चरितार्थ कर रहे थे। थोड़ा और आगे बढ़ने पर ट्रेन हालिया निर्मित बहुत सी लंबी लंबी सुरंगों से होकर गुजरने लगी, और सुरंगे भी ऐसी वैसी नहीं किलोमीटर लंबी, इतनी लंबी सुरंगों में से ट्रेन का निकलना मेरे और कई यात्रियों के लिए रोमांचक था, कई साथी यात्रियों ने माता के जयकारे और चिल्लाते हुए इसका आनंद उठाया।
नीयत समय पर ट्रैन श्री वैष्णो देवी कटरा स्टेशन पर पहुँच गयी थी, चूँकि ये इस ट्रैन का आखिरी स्टेशन था तो हम लोग आराम से उतरे, स्टेशन के सामने त्रिकूट पर्वत पर गुफा में विराजित माता वैष्णो देवी के मंदिर के कुछ हिस्से के दर्शन हो रहे थे, बादलों के बीच से कभी दिखते और कभी ओझल हो जाते ये नज़ारे स्वर्ग के दर्शन के सामान थे। सामान ट्रैन से बाहर उतारकर हम सबने माता का एक जोरदार जयकारा लगाया और स्टेशन से प्लेटफार्म नंबर 1 की तरफ से बाहर चल दिए (वैष्णो देवी, पटनी टॉप, शिवखोरी आदि जाने के लिए आपको इसी तरफ से बहार निकलना होता है), बाहर निकलते से उलटे हाथ पर टैक्सी स्टैंड है जहाँ से आपको वैष्णो देवी, पटनी टॉप, शिवखोरी आदि जगहों पर जाने के लिए टैक्सी सुविधा और ऑटो आदि मिल जाएंगे। कटरा रेलवे स्टेशन पर सभी मूलभूत सुविघाये उपलब्ध हैं जिसमें प्रमुख हैं सार्वजनिक शौचालय होटल (आइआरसीटिसी द्वारा संचालित), रेस्टोरेंट (आइआरसीटिसी द्वारा संचालित), टैक्सी स्टैंड आदि।
इस खूबसूरत स्टेशन पर एक फोटो तो निकलवाना बनता है।
चूँकि हमें यहाँ से सीधे माता के दर्शन करने नहीं जाना था तो हम स्टेशन से बाहर जाकर एक दुकान पर चाय पीने के इरादे से रुक गए, फोन में नेटवर्क नहीं आ रहा था इसलिए हम किसी भी ऑनलाइन यात्रा एप्प से होटल बुक नहीं कर सकते थे, तो चाय पीते हुए कुछ लोगों से होटल से सम्बंधित जानकारी ली। उसी दुकान पर यात्रा सिम भी मिल रहे थे, जैसे की मैंने आपको पहले भी बताया थे की सुरक्षा कारणों से जम्मू कश्मीर राज्य में अन्य राज्यों के प्रीपेड सिम कार्ड काम नहीं करते, या तो आपके पास पोस्टपेड हो या फिर आप यहाँ पर एक यात्रा सिम भी ले सकते हैं जो की 200 या 300 रूपये में मिल जाती है और उसमें लगभग उतने ही मूल्य का रिचार्ज भी होता है, इस सिम को लेने के लिए वही कागज लगते हैं जो की किसी अन्य राज्य में लगते हैं।
होटल का मेरा बजट 500 ₹ के आसपास का था, वहीँ मौजूद एक व्यक्ति जो की कई सारे होटल के पेम्पलेट लिए खड़ा था मैंने उससे बात की तो उसने 800 ₹ में एक होटल का साधारण रूम बताया जिसमें की होटल में रुकने के अलावा गाड़ी से मंदिर तक का लाना ले जाना शामिल था, जिसके ऑटो वाला भी करीब 100 से 150 ₹ एक तरफ से ले लेते हैं तो घुमा फिरकर बात वही पड़ती है, यही सोचकर मैंने इसी होटल में रुकना तय करा।
होटल में पहुँच कर चेक-इन करीब 9 बजे के बाद सबसे पहले नहाने धोना किया और थोड़ी देर आराम करने के बाद करीब 12 बजे रूम से निकल कर पास ही स्थित एक खाने की दुकान पर आलू के परांठे, दही और चाय का नाश्ता करा, नाश्ते के बाद होटल के एक बन्दे ने हमें होटल के वाहन द्वारा कटरा के बाज़ार से होते हुए उस स्थान पर छोड़ दिया जहाँ से वैष्णो देवी की चढाई शुरू होती है। बीच में पड़ने वाले बाज़ार में प्रसाद, खाने पीने की दुकानें, होटल आदि उपलब्ध थे।
यहाँ से हम बाणगंगा चेकपोस्ट की तरफ चल दिए जो की वैष्णो देवी की यात्रा का पहला पड़ाव है या यूँ कहिये यहीं से यात्रा शुरू होती है। लाइन बहुत ज्यादा लम्बी नहीं थी, यहाँ पर सबको सुरक्षा जाँच से होकर आगे बढ़ना होता है, इसी स्थान पर सबसे पहले आपकी यात्रा पर्ची की जाँच होती है। इस प्रक्रिया को पूरा करके हम लोग आगे बढ़ चले और समय हुआ था दिन के 01:30 , बमुश्किल 200 मीटर आगे बढ़ते ही हमें बाणगंगा के दर्शन हुए, बेहद ही खूबसूरत नज़ारा था, धुंध ने पूरे इलाके को अपनी आगोश में ले रखा था और उस धुंध के बीच से नदी के दर्शन एक सुखद एहसास था। थोड़ा और आगे बढे तो बाणगंगा के पुल पर कल कल बहते को पानी को देखकर मन नहीं माना और मैंने वहाँ रूककर उस नज़ारे को मन में और तस्वीरों में कैद करने जुट गया।
रास्ते में तरह तरह की दुकानें और मंदिर देखने को मिल रहे थे, और बहुत सारे लोग हमारे साथ या हमारे आगे पीछे माता का जयकारा लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे। रुई के फाहे से यहाँ वहाँ घुमड़ते बादलों को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे ये माता के भक्तों का स्वागत नृत्य करके कर रहे थे। थोड़ा और आगे बढ़ने पर हम "श्री चरण पादुका" मंदिर पर पहुँच गए थे, इस स्थान पर माता वैष्णो देवी ने मुड़कर देखा था के भैरव पीछे आ रहा है या नहीं, रुकने के कारण इस स्थान पर माता के चरणों के निशान बने गए थे इस वजह से इस जगह का नाम चरण पादुका पड़ गया। काफी जोश के साथ हम यहाँ से आगे बढ़ दिए, अब बड़ा हमारे आसपास से होकर गुज़र रहे थे जैसे हमसे हमारा हालचाल पूछ रहे हों, और चुपके से कान में कह रहे हों के अभी तो तुमको काफी आगे तक जाना है।
श्री चरण पादुका मंदिर
वैष्णो देवी ट्रैक की सबसे अच्छी बात ये है की यहाँ पर लोग 24 घंटे चलते रहते हैं और इस पूरे ट्रैक पर हर थोड़ी थोड़ी दूर पर बैठने के लिए बेंच, खाने पीने की दुकानें, सार्वजनिक शौचालय आदि सुविधाएँ उपलब्ध हैं जिससे आपका सफर काफी आरामदायक हो जाता है। पूरे रास्ते में स्पीकर लगे हुए हैं जिस पर माता के गाने बजते रहते हैं और आरती के समय इन्ही स्पीकर पर आरती का प्रसारण भी होता है।
इस पूरी चढाई में हमें ऐसे नज़ारे देखने को मिले थे।
धीरे धीरे चढाई कठिन होती जा रही थी और हम लोग थकने लगे थे, तो अब हमारे चलने की स्पीड थोड़ी काम हो गयी थी और अब हम थोड़ी थोड़ी दूरी पर रुकते हुए आगे बढ़ रहे थे और थोड़ा बहुत खाते पीते भी जा रहे थे ताकि शरीर में ऊर्जा बानी रहे क्यूंकि अभी हमें काफी आगे जाना था।
करीब 3 या 3:30 घंटे की कठिन चढ़ाई के बाद हम लोग अर्द्धकुवारी पहुँच गए थे, अर्द्धकुवारी को अर्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से भी जाना जाता है, ये वो स्थान है जहाँ माता ने 9 माह तक तपस्या की थी और उस दौरान बजरंगबली ने भैरव से युद्ध कर के उसे गुफा के बाहर ही रोके रखा था। अर्द्धकुवारी में दर्शन के लिए काफी लम्बी लाइन होने की वजह से वेटिंग टाइम काफी ज्यादा था और हमारे पास इतना समय नहीं था और कहीं न कहीं मेरे मन में ये भी था के सबसे पहले माता के भवन जाकर वहाँ दर्शन करे जाएं उसके बाद समय और शरीर की स्थिति अनुसार आगे का कार्यक्रम तय करेंगे, इसी बात को मन में रखकर हम लोग अर्द्धकुवारी वाले रास्ते पर आगे बढ़ चले, मेरे मन में ख्याल आया के क्यों न एक बार रास्ते के बारे में पूछ लिया जाये क्यूंकि सुनने में आया था की अर्द्धकुवारी से एक नया रास्ता बनाया गया है जो की थोड़ा आसान और कम चढाई वाला है। मैंने वहीँ बैठे हुए एक व्यक्ति से पुछा तो पता लगा के एक नया रास्ता चालू किया गया है जिस पर बैटरी वाले वाहन चलते हैं और वहाँ घोड़े, पालकी की मनाही है। नया रास्ता पुराने से एक किलोमीटर कम है और चढाई भी उतनी कठिन नहीं है तो हमने इस नए रास्ते को चुनने का मन किया, इसके लिए हमें करीब 300 400 मीटर वापिस जाना पड़ा।
इससे ज्यादा खूबसूरत शायद ही कुछ और हो।
चूँकि इस नए रास्ते पर घोड़े आदि नहीं चलते इसलिए ये काफी साफ सुथरा है, इसके अलावा इस पर बैटरी वाले वाहन भी चलते हैं इसलिए इस रास्ते पर कहीं भी बहुत ज्यादा खड़ी चढाई नहीं है। जहाँ से ये रास्ता शुरू होता उसके कुछ पीछे ही बैटरी वाले वाहनों का टिकट काउंटर हैं जहाँ से आप टिकट लेकर इन वाहनों से आगे की यात्रा कर सकते हैं। खैर हमारा लक्ष्य था माता के भवन तक पैदल जाने का इसलिए हमने उस रास्ते से आगे बढ़ना शुरू कर दिया, पूरा रास्ता तीन शेड से कवर है ताकि यात्रीओं को किसी भी मौसम में दिक्कत न हो। इस रास्ते पर जहाँ भी पहाड़ से पत्थर गिरने का भय है ऐसे प्रत्येक स्थान पर बोर्ड लगे हुए हैं और कुछ जगहों पर जहाँ पहाड़ के दरकने की ज़रा भी गुंजाइश है वहाँ लोहे के जैकेट से उतने पूरे हिस्से को कवर किया गया है ताकि उसमें से पत्थर दरकने की स्थिति में किसी तरह कि कोई हानि न हो। रास्ते में एक जगह रुक कर राजमा चावल, इडली सांभर और चाय का आनंद लिया, ये सारे खाने के आइटम यहाँ उचित दाम में मिल जाते हैं।
इससे बेहतरीन सूर्यास्त मैंने आज तक नहीं देखा।
थकान की वजह से हमारे चलने की गति काफी कम हो गयी थी, तो अब थोड़ा चलते थोड़ा रुकते ऐसा हो रहा था, इस बीच में जहाँ भी कुछ अच्छा दृश्य दिखता था उसे तस्वीरों में कैद करना नहीं भूलता था। चलते चलते शाम हो गयी थी और थोड़ी ही देर में सूरज डूबने वाला था, पूरा आसमान लाल और नीले रंग के बड़े से कैनवास के सामान दिख रहा था और थोड़ी ही देर में सूरज देवता हमसे विदा लेकर आराम करने की मुद्रा में दिखने लगे और मैंने इस लम्हे को अपने कैमरा में कैद कर लिया।
इस कॉफ़ी के साथ ये नज़ारे मुफ्त थे।
थोड़ा और आगे चलने पर माता का भवन दिखने लगा था और शाम की आरती का समय हो गया था, रास्तो में लगे स्पीकर में आरती की ध्वनि गूंजने लगी थी और हम और ज्यादा उत्साह से आगे बढ़ने लगे। करीब 8:00 के आसपास हम लोग माता के भवन के पास पहुँच गए थे और सूरज ढलने के बाद अचानक से ठण्ड हो गयी थी। चूँकि आरती के वक़्त मंदिर 2 घंटे के लिए बंद रहता है तो हम जहाँ भैरव के रोपवे का काम चल रहा है उससे थोड़ा आगे जहाँ धर्मशाला आदि हैं और सामान जमा करने के लिए लॉकर रूम भी है, उसी लॉकर रूम के बाहर बैठ गए। हमें अपना सारा सामान लॉकर रूम में जामा करना था, माता के भवन में आप अपने साथ सिर्फ पैसे, प्रसाद, यात्रा पर्ची और आईडी प्रूफ के अलावा कुछ भी नहीं ले जा सकते, हाथ घडी, कड़ा माता के श्रृंगार का सामान आदि कुछ भी नहीं। जांच के दौरान ऐसा कुछ भी सामन आपके साथ होगा तो वो आपको वही छोड़ कर आगे बढ़ना होगा या लाइन से निकलकर लॉकर में रखकर वापिस लाइन में लगना होगा, इससे बेहतर है सब कुछ पहले ही लॉकर रूम में रख दें। भवन के आसपास 3 4 लॉकर रूम हैं जो की निशुल्क हैं।
माता के भवन के प्रथम दर्शन।
मंदिर आरती की वजह से बंद था तो ज्यादातर लोग जिन्होंने लॉकर रूम में सामान रखा था उनकी वापसी दर्शन के बाद ही होगी और तभी लॉकर खाली होंगे और हमें मिलेंगे, इसी इंतज़ार में हम वही बैठे रहे। सामने श्राइन बोर्ड की दुकान से प्रसाद भी ले लिया, थोड़ी देर में मंदिर खुल गया और लॉकर मिलना शुरू हो गए। मैंने लॉकर में सारा सामान रखा और ताला लगाकर चाबी संभलकर रख ली, अब करीब 9 के ऊपर का समय था और ठण्ड उतनी जितनी मैदानी इलाकों में नवंबर आखिर में होती है, हमारा रोम रोम ठण्ड से काँप रहा था और मेरी नासमझी की वजह से हम सर्दी वाले कपड़े होटल में ही छोड़ आये थे, अब हमारे पास कोई चारा नहीं था तो चल दिए माता के भवन की तरफ जाने वाली लाइन में लगने के लिए।
मंदिर काफी देर बाद खुला था तो लाइन काफी लम्बी थी और करीब पौन घंटे के इंतेज़ार के बाद हम लोग भवन के अंदर हुए, भवन के अंदर जाते से ही आपको सबसे पहले एक स्थान पर अपने प्रसाद के झोले में से नारियल निकल कर देने होते हैं जो की आपको दर्शन के बाद मिल जाते हैं, प्रत्येक नारियल का एक टोकन मिल जाता है, मेरे पास 3 टोकन थे। उसके बाद आपको दर्शन होते हैं पवित्र गुफा के, भक्तों में जोश की कोई कमी नहीं थी और माहौल माता के जयकारों से गूँज रहा था।
पवित्र गुफा के दर्शन के बाद हम लोग थोड़ा और आगे बढे तो एक काफी बड़ा खुला कॉरिडोर आ गया जहाँ एक तरफ बाणगंगा का पानी काफी शोर करता हुआ नीचे की तरफ बह रह था और दूसरी तरफ वही पानी माता के चरणों को पखार कर आगे जाता है जिसे श्राइन बोर्ड ने एक पियाउ की तरह एक जगह उसी पानी को चरणामृत के रूप में उपलब्ध कराया है जिसे पीकर और शरीर पर छिड़ककर भक्त लोग उद्धार होते हैं। एक अजीब सी ही शांति थी यहाँ, ऊपर से रात और बगल से बहता पानी, कुल मिलाकर काफी अच्छा नज़ारा था। इस कॉरिडोर से आगे सब लोग एक लाइन में माता की पिण्डीओं के दर्शन के लिए एक सुरंग की तरह दिखने वाला मार्ग से आगे बढे जिसमे जगह जगह पानी रिस रहा था। चूँकि पिंडी जहाँ है वो स्थान बहुत छोटा है और हजारों को संख्या में श्रद्धालु दिन रात आते रहते हैं इस वजह से आपको कुल मिलाकर 4 5 सेकंड का ही समय मिलता है इन पिण्डियों के दर्शन के लिए, यहाँ पर सिर्फ माता की चुनरी चढाई जाती है, इसके अलावा आप किसी भी तरह का प्रसाद या दान यहाँ नहीं दे सकते।
पिंडी दर्शन के बाद बहार निकले और चरणामृत का सेवन किया और थोड़ा अपने शरीर पर भी छिड़का और फिर वही बैठ गए, मन एक दम शांत था, अगर सुरक्षा एजेंसी वाले लोग हमें वहाँ से जाने को नहीं कहते तो हम रात भर वहीं बैठे रहते मगर वो भी मजबूर थे क्यूंकि स्थान सीमित है और लोग हजारों। खैर हमने एक बार फिर माता को सर झुकाकर प्रणाम किया और बुझे मन से बाहर की तरफ चल दिए।
बाहर निकलकर टोकन वापिस करके नारियल लिए, प्रसाद की पुड़िया लीं जो की हर एक भक्त को श्राइन बोर्ड द्वारा दी जाती है। कुछ दोस्तों ने दान करने के लिए पैसे दिए थे तो वो दान काउंटर पर दिए और रसीद प्राप्त की। ये सब करने के बाद मंदिर परिसर से बाहर की तरफ चल दिए, काफी ज़ोरों की भूख लगी थी और नेहा के तो सर में जबरदस्त सर दर्द भी हो रहा था ऊपर से ठण्ड भी ठीकठाक थी, कुल मिलाकर हमारी हालत ख़राब थी। बाहर पहुँचकर "सागर रत्न" रेस्टॉरेंट में 2 कुर्सियों की जुगाड़ की, जो की बड़ी मुश्किल से हुई क्यूंकि भीड़ बहुत ज्यादा थी। खाने में कुछ समझ नहीं आ रहा था तो 2 डोसा आर्डर कर दिए, मैंने तो अपना डोसा खा लिया मगर नेहा का सर दर्द इतना ज्यादा था की उससे कुछ नहीं खाया गया। खा पीकर वहाँ से बाहर निकले तो लगा की अब कहीं 2 घंटे सोने को मिल जाये उसके बाद भैरव जाने का प्लान बनाएं मगर पहले से बुकिंग न होने और भीड़ काफी ज्यादा होने की वजह से निराशा हाथ लगी। अब सर्दी काफी ज्यादा हो गयी थी तो एक कम्बल तलाशने की काफी कोशिश की ताकि उसके सहारे कहीं 2 घंटे की नींद हो जाये, मगर उसमें भी निराशा ही हाथ लगी।
चलते चलते मेरी भी हालत बहुत ज्यादा ख़राब हो गयी थी मगर संसाधनों की कमी की वजह से हमें समझ नहीं आ रहा था की क्या करें, इस समय हमारी हालत घोड़े से भी भैरव जाने की नहीं थी और सोने का इंतजाम भी नहीं हो पा रहा था, तो थक हारकर ये निर्णय लिया की यहीं से धीरे धीरे वापसी करते हैं कभी दुबारा आएंगे तब भैरव के भी दर्शन करके जाएंगे। जहाँ बैठे थे वहीँ से भैरव को झुककर प्रणाम किया और उनके मंदिर तक ना आ पाने के लिए माफ़ी मांगी और फिर चल दिए वापिस कटरा की तरफ, घड़ी में अभी रात के 01:30 हो रहे थे। अगले 6 घंटे की पैदल यात्रा के बाद हम लोग 07:30 बजे बाणगंगा चेकपोस्ट क्रॉस कर चुके थे।
कटरा रेलवे स्टेशन से दिखता खूबसूरत नज़ारा।
कटरा स्टेशन से दिखते बदलो से घिरे बेहद ही खूबसूरत पहाड़।
"ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू मैं जहाँ रहूँ जहाँ में याद रहे तू"
तो ये थी हमारे द्वारा की गयी वैष्णो देवी की एक अधूरी यात्रा, अधूरी इसलिए क्यूंकि हम माता के भवन जाने के बाद भैरव दर्शन को नहीं जा पाए। चलिए कोई नहीं माता का बुलावा फिर कभी आएगा तब जाएंगे पूरी तैयारी के साथ और तब इस यात्रा को पूरा करेंगे।
"जय माता दी"
फिर मिलेंगे कहीं किसी रोज़ घूमते फिरते।
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